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देवतामूर्ति-प्रकरणम् .
.धातुलिङ्ग में विशेषता
लौहं मिश्रं न कर्त्तव्यं स्वमात्रयोनिसंयुतम्।
शिवलिङ्ग मिश्र धातु का नहीं करना अर्थात् जिस धातु का शिवलिङ्ग हो उसी धातु की पाठिका भी करनी चाहिए। जैसे सुवर्ण के लिङ्ग की सुवर्ण की पीठिका करनी, परन्तु दूसरी धातु की नहीं करनी।
The Yoni or base in which the Siva-linga is placed should be of the same metal as used for the Siva-linga. Different metals should not be used for the twe!
रत्नलिङ्ग का मान-
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. . कर्त्तव्यं धातुलिङ्गस्य प्रमाणेन हि रत्नजम् ॥ ६३ ॥ : . रत्न जाति के शिवलिङ्ग धातु के लिङ्ग के मान मुजब बनाना। .
For Siva-lingas made from jewels or precious stones follow the same scale as for metal Siva-lingas. (63). - काष्ठ के लिङ्ग का मान
षोडशाङ्गुललिङ्ग च एकैकांगुलवर्द्धनात्। लिङ्गान्यारसहस्तान्त-मष्टाविंशोत्तरं शतम्। ऋमेण नवलिङ्गानां षट्करान्तानि संख्यया ॥ ६४॥
काष्ठ का लिङ्ग सोलह अङ्गुल से कम ऊँचाई का नहीं करना चाहिये, इस सोलह अङ्गुल में क्रमशः एक वार एक २ अङ्गुल बढ़ाकर छः हाथ तक ऊँचाई का बनाना। या सोलह अङ्गुल में आठ बार सोलह २ अङ्गुल बढाने से एक सौ अठाइस अंगुल होते हैं। अर्थात् आठ वार सोलह २ अङ्गल बढ़ाने से छः हाथ तक बढ़ाना। यह नव प्रकार के काष्ठ लिङ्ग का मान होता है। ये छः हाथ की ही बनाई जाती है। इस प्रकार से काष्ठ लिङ्ग समझना।
Wooden lingas should not be less than sixteen angulas in height. By adding sixteen angulas at time to the initial sixteen angulas, wooden Siva-lingas may be made upto a scale of six hastas. In other words, increase the height of the lingas upto one hundred and twenty eight angulas by adding sixteen angulas cach