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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
त्रयंबक
त्र्यम्बकोऽपि दधच्चक्रं डमरुं मुद्गरं शरम् । शूलांकुशाहिजाप्यं च दक्षोर्ध्वादिकराष्टके ॥ ५५ ॥ गदाखट्वाङ्गपात्राणि कार्मुकं तर्जनीं घटम् । परशुं पट्विशं चैव वामोर्ध्वादिक्रमेण वै ॥ ५६॥
चक्र, डमरु, मुद्गर, बाण, त्रिशूल, अङ्कुश, सर्प और अक्षमाला ये ऊपर के क्रम से आठ दाहिने हाथों में, तथा गदा, खट्वाङ्ग, पात्र, (पाश ?) धनुष, तर्जनी, कुम्भ, फरशा और पट्टिस ये ऊपर के क्रम से आठ बायें हाथों में धारण करने वाला त्र्यंबक देव है ।
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Trayambak -
Trayambak also has sixteen arms. He should be depicted as having a disc, a damroo, a mudgar mace, an arrow, a trident, a goad, a snake and a string of prayer-beads in his eight upraised right hands. (55).
In the eight upraised left hands are a mace, the khatvanga club, a patra vessel (drinking-cup?), a bow, upraised tarjani fore finger, a water-pot (ghatam ), an axe and a pattish (spear) respectively, in the order cited. (56).
हरिहरमूर्ति :
कार्यो हरिहरश्चापि दक्षिणार्द्धे सदाशिवः ।
वामार्द्धे च हृषीकेशः श्वेतनीलाकृती क्रमात् ॥ ५७ ॥ वरत्रिशूलचक्राब्ज-धारिणो बाहवः क्रमात् ।
दक्षिणे वृषभः पार्श्वे वामे विहङ्गराडिति ॥ ५८ ॥
एक ही शरीर वाली हरि और हर की मूर्ति बनाना, उसमें दाहिनी ओर
के आधे भाग में सदाशिव और बाँयी तरफ के आधे भाग में हृषीकेश की मूर्ति क्रम से सफेद और नीले रंग की करना । दाहिनी भुजाओं में वरदमुद्रा और