________________
देवतामूर्ति-प्रकरणम्
..
157
हरिहरपितामह
एकपीठसमारूढ - मेकदेहनिवासिनम्।' षड्भुजं च चतुर्वक्त्रं सर्वलक्षणसंयुतम् ॥ ४३ ॥ अक्षसूत्रं त्रिशूलं च गदां चैव तु दक्षिणे। कमण्डलुं च खट्वाङ्गं चक्रं वामभुजे तथा ॥ ४४ ॥
एक ही आसन ऊपर बैठे हुए और एक ही शरीर धारण करने वाले छह भुजा, चार मुख और सब- लक्षणों से युक्त विष्णु, शिव और ब्रह्मा की मूर्ति बनाना। दाहिनी तीन भुजाओं में क्रम से अक्षमाला, त्रिशूल और गदा को तथा बाँयी तीन भुजाओं में कमण्डलु, खट्वाङ्ग और चक्र धारण करने वाली बनाना।
Hariharapitamah
Seated on one (common) pedestal and ensconced within one 1 'ysical body is the six-armed idol of Hari-hara-pitamah with four faces, endowed with all the symbols and attributes (of Vishnu, Siva and Brahma). (43).
. . A string of prayer-beads, à trident and a mace grace the three right hands, while a kamandalu, the khatvanga club and a disc are held in the left hands. (44). सूर्यहरिहरपितामह
चतुर्वक्त्रमष्टबाहुं चतुष्कैकनिवासिनम् । ऋद्धा (?प्राच्ये) मुखगत: कार्य: पद्महस्तो दिवाकरः ॥ ४५ ॥ खट्वाङ्ग त्रिशूलहस्तो रुद्रो दक्षिणत: शुभ : । कमण्डलुश्चाक्षसूत्रमपरस्थ: पितामहः ॥ ४६ ॥ शङ्खचक्रधरो हरिर्वामे चैव तु संस्थितः ।
एवं विधोऽयं' कर्त्तव्यः सर्वकामफलप्रदः ॥ ४७ ॥ 1. मु. एकपीठसमारूढं तनुत्रयनिवासिनम् ।