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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
अघोर
दंष्ट्राकरालविकटास्यं सर्पशीर्ष त्रिलोचनम् ।
रुण्डमालाधरं देवं सर्पकुण्डलमेव च ॥ ६ ॥
भुजंग-केयूरधरं सर्पहारोपवीतिनम् । गोनसं कटिसूत्रं च वृश्चिकमालिका गले ॥ ७ ॥ नीलोत्पलदल - श्याम मतसीपुष्पसन्निभम् । पिंगभू-पिंगजटिलं शशाङ्ककृतशेखरम् ॥ ८॥ तक्षकं पुष्टिकं चैवं पादौ च नूपुरौ कृतौ । अघोरस्य स्वरूपं तु कालरूपमिवापरम् ॥ ९ ॥ महावीर्यं महोत्साह मष्टबाहुं महाबलम् ॥ त्रासयन्तं रिपुबलं निवेशो यत्र भूतले ॥ १० ॥ खट्वाङ्गं च कपालं च खेटकं पाशमेव च । वामहस्तेषु कर्त्तव्य' - मिदं शस्त्रचतुष्टयम्॥ ११॥ त्रिशूलं परशुं खड्गं दण्डं चैवारिमर्दनम् । दक्षिणेषु करेषु स्यादेतच्छस्त्रचतुष्टयम् ॥ १२॥
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अघोर देव बड़े-बड़े दाँतों से युक्त भयंकर मुख वाला, माथे के ऊपर सांप को धारण करने वाला, तीन नेत्र वाला, नर-मुण्डों की माला धारण करने वाला, कान में सांपों का कुण्डल पहनने वाला, सांप के बाजूबन्द वाला, सांप की माला और जनेऊ धारण करने वाला, गोनस सांप की कटि मेखला वाला, गले में विछू की माला पहनने वाला, नील कमल के जैसी या अलसी के पुष्प जैसी
1. मु. कर्त्तव्यं शस्त्राणां च चतुष्टयम् ।
मु. चक्रं ।
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