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________________ देवतामूर्ति-प्रकरणम् 141 विशिष्ट विवेचन 1. पद्य-14. बृहत्संहिता में विष्णु भगवान का स्वरूप इस प्रकार है“कार्योऽष्टभुजो भगवांश्चतुर्भुजो द्विभुज एव वा विष्णुः। श्रीवत्सांकितवक्षाः कौस्तुभमणिभूषितोरस्कः॥१॥ अतसीकुसुमश्यामः पीताम्बरनिवसनः प्रसन्नमुखः। कुण्डलकिरीटधारी पीनगलोर स्थलांसभुजः॥२॥ खड्गगदाशरपाणिर्दक्षिणतः शान्तदश्चतुर्थकरः । वामकरेषु च कार्मुकखेटकचक्राणि शङ्खश्च ॥३॥ अथ च चतुर्भुजमिच्छति शान्तिद एको गदाधरश्चान्यः। दक्षिणपाश्र्वे त्वेषं वामे शङ्खश्च चक्रं च ॥४॥ द्विभुजस्य तु शान्तिकरों दक्षिणहस्तोपरश्च शङ्खधरः। एवं विष्णोः प्रतिमा कर्तव्या भूतिमिच्छन्द्रिः ॥५॥" कृष्ण और बलदेव के बीच में जो 'एकानंशा' नाम की देवी रखी जाती है, उसका स्वरूप बृहत्संहिता के मतानुसार'एकानंशा कार्या देवी बलदेव-कृष्णयोर्मध्ये। कटिसंस्थितवामकरा सरोजमितरेण चोद्वहती ॥१।” कार्या . चतुर्भुजा. या वामकराभ्यां सुपुस्तकं कमलम् । द्वाभ्यां दक्षिणपावें वरदाथिमक्षसूत्रं च ॥२॥ वामेऽथाष्टभुजाया: कमण्डलुश्चापमम्बुजं शास्त्रम्। वरशरदर्पणयुक्ताः सव्यभुजाः साक्षसूत्राश्च ॥३॥ बलदेव और कृष्ण के बीच में एकानंशा नाम की देवी स्थापन करना। उसका बाँया हाथ कटी पर रहा हुआ हो और दाहिना हाथ कमल धारण करने वाला हो। यह देवी चार भुजा वाली बनावें तो उसके बाँयें दोनों भुजाओं में 1. . 'द्रष्टुरभिमुख ऊर्ध्वागुलि: शान्तिदः करः' इति वृहत्संहिता की टीका में लिखा है।
SR No.002234
Book TitleDevta Murti Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1999
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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