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देवतामूर्ति-प्रकरणम् ..
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पश्चिम दिशा का द्वारपाल
तर्जनी बाण-चापं च गदां तेषु प्रदक्षिणा।
गदाऽपि सव्यत: कुर्याद् धाता तस्माद् विधातृकः ॥११४ ॥
. तर्जनी, बाण, धनुष और गदा को प्रदक्षिणा क्रम से धारण करने वाला बाँयी ओर धाता को स्थापना। गदा, तर्जनी, बाण और धनुष को धारण करने वाला दाहिनी ओर विधाता को स्थापना ।
At the western cntrance stand Dhata and Vidhata. Dhata has a raised föresinger, an arrow, a bow and a mace in the order of pradakshina, while Vidhata possesses the same atıributes in the opposite order. (114). उत्तर दिशा का द्वारपाल
तर्जनी पद्म शङ्ख च गदां तेषु प्रदक्षिणा। - सव्यापसव्ययोगेन. सुभद्रो भद्र एव च ॥११५ ॥
तर्जनी, कमल, शङ्ख और गदा को प्रदक्षिणा क्रम से धारण करने वाला बाँयी ओर भद्र नाम का द्वारपाल स्थापना। इन शस्त्रों का अदल बदल करने से सुभद्र नाम का द्वारपाल दाहिनी ओर स्थापित करना।
Guarding the northern portal are Bhadra and Subhadra. Bhadra has the tarjani finger, a lotus, a conchshell and a mace in the pradakshina order; while Subhadra holds the same attributes in the reverse order. (115).
मूर्तेः प्रमाणगणनां गरुडध्वजस्य, ब्रह्मादयोऽमरंगणा न हि ते समर्थाः । विश्वस्य पालनविधौ बहुधा प्रकारं,
रूपाणि यस्य विचरन्ति स पातु विष्णुः ॥११६ ॥ इति क्षेत्रात्मज-सूत्रभृन्मण्डनविरचिते वास्तुशास्त्रे देवतामूर्तिप्रकरणे दशावतारे
विष्णु-शालिग्राम-शिलापरीक्षादिभेदाधिकारो नाम पञ्चमोध्यायः ॥५॥ . विष्णु की मूर्ति के प्रमाण की गणना करने में ब्रह्मा आदि देवगण भी