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________________ 129 देवतामूर्ति-प्रकरणम् ____129 हिरण्यकशिपुं दैत्यं दारयन्तीं नखांकुरैः । ऊरोरुपरि विन्यस्य खड्गखेटक-धारिणम् ॥७८ ॥ तस्यान्त्रमालां निष्कृष्य बाहुयुग्मेन बिभ्रतीम् । आकारं पुरुषस्यैव धारयन्ती गनोहरम् ॥७९ ॥ मध्यस्थिताभ्यां बाहुभ्यां दक्षिणे चक्रपङ्कजे। कौमोदकी तथा शङ्ख बाहुभ्यामिति वामतः ॥८० ॥ अधःस्थिताभ्यां बाहुभ्यां दारयन्ती प्रकल्पयेत् । ऊर्ध्वस्थिताभ्यां बाहुभ्यामन्त्रमालां तु बिभ्रतीम् ॥८१ ॥ नीलोत्पलदलच्छायां चञ्चच्चम्पकसप्रभाम् । तप्तकांचनसंकाशां बालार्कसदृशीं लिखेत् ॥८२ ॥ अब नरसिंह की मूर्ति के लक्षण कहता हूँ-भयङ्कर सिंह के जैसे मुख और नेत्रवाली, आठ भुजा वाली, स्थूल केश की जटावाली, ऊरु के ऊपर रखे हुए खड्ग और ढाल वाले हिरण्यकशिपु नाम के दैत्य को नखों से चीरती हुई, दैत्य के ऑतों को निकाल कर दोनों हाथों से धारण करती हुई, मुख के नीचे का शरीर. पुरुष के सुंदर आकार को धारण करती, मध्य की दाहिनी दोनों भुजाओं में क्रम से चक्र और कमल को, तथा मध्य की-बाँयी भुजाओं में गदा और शङ्क को धारण करती हुई, नीचे की दो भुजाओं से दैत्य को चीरती हुई, ऊपर की दोनों भुजाओं से आंतों की माला को धारण करती हुई, नीलकमल के जैसी कांति वाली, चम्पा के जैसी प्रभा वाली, तपे हुए सुवर्ण के जैसी या बाल सूर्य के जैसी कान्ति वाली ऐसी नरसिंह भगवान की सुन्दर मूर्ति बनावें। I (Mandan) now describe the image of Narsingh-he who. has the visage and cycs of a ficrce and terrible lion, and possesses eight arms and has a profuse mane or dhvajapeenasata-shritam (literally, a collection of profuse matted hair, or mane of a lion, adorning the head) (77). On his thighs lies the daitya (demon) Hiranyakashipu holding a sword and a shield, whom Narsingh is Icaring apart with his nails. (78).
SR No.002234
Book TitleDevta Murti Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1999
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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