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देवतामूर्ति-प्रकरणम्
तस्मिन् गृहे ने दारिद्र्यं न शोको रोगजं भयम्। न चोराग्निभयं तस्य ग्रहैः रोगैर्न बाध्यते ॥ अन्ते मोक्षो भवेत् तस्य पूजनादेव नित्यशः ॥४४ ॥
जो शिला केवल एक चक्रवाली, पद्म, गदा, हल और वनमाला के चिह्न वाली हो, उसमें लक्ष्मी के साथ हरि रहे हुए हैं, ऐसा जानना। उसका हमेशा पूजन करने से घर में दारिद्र्य नहीं रहता, एवं शोक, रोग का भय, चोर का भय
और अग्नि का भय नहीं होता, तथा ग्रह और रोग की पीड़ा नहीं होती। अन्त में मोक्ष के सुख को देने वाली है। .
A stone with only a single circle, and bearing the mark of a lotus, or mace, or a vanamala (a garland of forest-flowers, usually worn by Krishna in iconography), indicates that it is the abode of both Hari and Lakshmi (Hari with Lakshmi). (43).
Worshipping such a stone will keep poverty and sorrow away from one's home, and provide freedom from illness and plague, theft, fire and the evil influence of negative constellation positions. It will finally lead to salvation: (44). नरसिंह- . . .
विकटास्या तु विकृता नृसिंहमुखलाञ्छना। पाशांकुंशगदा-चक्राण्येषामंकेन लाञ्छिता ॥४५॥ नारसिंही भवेन्मुद्रा भोगमोक्षप्रदायिका। दर्शनान्नश्यते पापं ब्रह्महत्यां व्यपोहति ॥४६॥
जो शालिग्राम शिला भयङ्कर और विरूप ऐसे नरसिंह के मुख के चिह्न वाली हो, तथा पाश, अङ्कश, गदा और चक्र ये चारों चिह्नों से युक्त हो, तो वह नारसिंही मुद्रा जानना। वह सुख और मोक्ष को देने वाली है। उसके दर्शन से पाप नाश हो जाते हैं, ब्रह्महत्या के पाप को भी नाश करती है।
A stone which seems terribly fearsome and deformed, with the signs of the face of Narsingh, and which has the four marks of a pash (noose, or length of rope to tie the wicked), an ankush