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देवतामूर्ति-प्रकरणम् ..
सूर्य के मन्दिर के मध्य में सूर्य, अग्नि कोण में मंगल, दक्षिण में गुरु, नैर्ऋत्य कोण में राहु, पश्चिम दिशा में शुक्र, वायव्य कोण में केतु, उत्तर दिशा में बुध, ईशान कोण में शनि और पूर्वदिशा में चन्द्रमा स्थापन करना चाहिये।
In a temple dedicated to the Sun, statues of other deities should be so arranged that, with the idol of Surya in the centre, Kuja (i.e. Mangal or Mars) is in the south-eastern quarter, Guru (Brihaspati or Jupiter) in the south, Rahu in the south-western, and Shukra (Venus) in the western. (36).
Ketu should be in the north-western direction, with Budh (Mercury) in the .northern, Shani (Saturn) in the north-castern, and Chandrama (the Moon) in the eastern direction.(37).
देवों का पञ्चायतनसूर्यैकदन्ताच्युतशक्तिरुद्रा, विघ्नेशशक्तीश्वरविष्णुसूर्याः । श्रीनाथविघ्नेशभगाम्बिकेशाश्चण्डीश हैरम्बपतङ्गकृष्णाः ॥३८॥ श्रीकण्ठसूर्याखुरथाम्बिकाजा: प्रदक्षिणैमध्यविदिक्षु पूज्याः ॥ स्वस्थानगा: सर्वमनोरथांस्ते यच्छन्ति विघ्नानि परत्रसंस्थाः ॥३९॥
सूर्य के पञ्चायतन में सूर्य को मध्य में स्थापन करके प्रदक्षिणा क्रम से पूर्व में गणेश, दक्षिण में विष्णु, पश्चिम में शक्ति देवी और उत्तर में महादेव को स्थापन करें। गणेश के पञ्चायतन में गणेश को मध्य में स्थापन करके उसके पूर्व में शक्ति देवी, दक्षिण में महादेव, पश्चिम में विष्णु और उत्तर में सूर्य को स्थापन करें। विष्णु के पञ्चायतन में मध्य में विष्णु को स्थापन करके उसके पूर्व में गणेश, दक्षिण में सूर्य, पश्चिम में शक्ति देवी और उत्तर में महादेव को स्थापन करें। शक्ति देवी के पञ्चायतन में मध्य में शक्ति देवी को स्थापन करके उसके पूर्व में महादेव, दक्षिण में गणेश, पश्चिम में सूर्य और उत्तर में विष्णु को स्थापन करें। महादेव के पञ्चायतन में मध्य में महादेव को स्थापन करके उसके पूर्व में सूर्य, दक्षिण में गणेश, पश्चिम में शक्ति देवी और उत्तर में विष्णु को स्थापन करें। इस प्रकार जो देवी के पञ्चायतन में प्रदक्षिणा क्रम से स्थापन करने का