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________________ देवतामूर्ति-प्रकरणम् ब्रह्माणं दक्षिणेनास्य वामतः पुरुषोत्तमम् ।। अन्यथा स्थापनादेषां प्रत्यवायो महान् भवेत् ॥” अ.७० शलोक १४१-१४२ । पुरुषत्रय की स्थापना में मध्य में शिव, दक्षिण में ब्रह्मा और बाँयी ओर विष्णु को स्थापन करे। इससे विपरीत स्थापन करे तो दोषकारक है। 3. पद्य-27. नकुलीश मूर्ति का स्वरूप विश्वकर्मावतार-वास्तुशास्त्र में कहा है किनकुलीशं ऊर्ध्वमेदूं पद्मासनसुसंस्थितम्। दक्षिणे मातुलिङ्गं च वामे दण्डं प्रकीर्तितम् ॥ . नकुलीश की मूर्ति ऊर्ध्व लिंग वाली और पद्मासन लेती हुई, उसके दाहिने हाथ में बिजोरा और बाँये हाथ में दण्ड है। उसकी प्राचीन मूर्ति के नीचे कभी-कभी नंदी और दोनों तरफ जटाधारी साधुजन होते हैं।
SR No.002234
Book TitleDevta Murti Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1999
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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