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________________ 'तत्त्वार्थवार्तिक' में प्रतिपादित मानवीय मूल्य 153 राममनोहर त्रिपाठी के मत में “आध्यात्मिकता और भौतिकता के समन्वित बोध से आज उसी नयी मानवता की स्थापना सम्भव है, जो संकट के इस समय अपने कल्याण का मार्ग पाने में समर्थ हो सकती है।' भट्ट अकलंकदेव भी मानव को पूरा मानवीय गुणों से युक्त बनाकर सिद्धत्व प्राप्त करना चाहते हैं जो उनके बताये मार्ग पर चलने से अवश्य ही प्राप्त होगा। अंत में 'पंत' की इस भावना के साथ मानवीय मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने की भावना के साथ विराम लेता हूँ “आज हमें मानव मन को करना आत्मा के अभिमुख मनुष्यत्व में मज्जित करने युग जीवन के सुख-दुःख • पिघला देगी लौह पुरुष को आत्मा की कोमलता जन बल से रे कहीं बडी है मनुष्यत्व की क्षमता।।"२ .. हिन्दी कविता संवेदना और दृष्टि, पृ० ४७ २. स्वर्णधूलि
SR No.002233
Book TitleJain Nyaya me Akalankdev ka Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1999
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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