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410 * द्वारिका दहन और कृष्ण का देहान्त नामक एक वन मिला। वहां पहुंचने पर मद्यपान के कारण, लवणयुक्त भोजन के कारण, कड़ी धूप के कारण, थकावट के कारण, शोक के कारण या यों कहिये, कि पुण्य क्षीण होने के कारण कृष्ण को जोरों की प्यास लगी। इसलिए उन्होंने बलराम से कहा- “भाई! प्यास के कारण मेरा कंठ बेतरह सूख रहा है। यद्यपि वृक्षों की घनी छाया के कारण यहां धूप नहीं लगती, तथापि तृषा के कारण अब एक पद भी आगे बढ़ने का मुझ में सामर्थ्य नहीं है।"
बलराम ने कहा-“हे बन्धो! आप सावधानी के साथ इसी वृक्ष के नीचे विश्राम कीजिए, मैं अभी आपके लिए जल ले आता हूँ।" .
इतना कह बलराम जल लेने गये और कृष्ण पैर पर पैर चढ़ा, पीताम्बर ओढ़कर, वहीं पर वृक्ष के नीचे लेट गये। थके पके तो वे थे ही, इसलिए भूमि पर लेटते ही उन्हें निद्रा आ गयी। चलते समय बलराम ने पुन: कहा- "हे. बन्धों! मैं अभी आ रहा हूँ, मुझे अधिक समय न लगेगा, आप मेरे वापस आने तक खूब सावधान रहिएगा।"
इसके उत्तर में कृष्ण ने शिर हिला दिया। परन्तु बलराम को आज किसी तरह मानो सन्तोष ही न होता था। कोई अज्ञात शंका रह-रह कर उनके हृदय को कँपा देती थी। चलते चलते उन्होंने आकाश की ओर मुख उठाकर कहा—“हे वन देवता! मेरा छोटा भाई इस समय आपकी शरण में है। हे भगवन् ! आप ही इसकी रक्षा कीजिएगा।". .,
पाठकों को स्मरण होगा, कि जराकुमार ने कृष्ण की रक्षा के लिए वनवास स्वीकार किया था, दैवयोग से वह इसी वन में रहता था और मृगादिक का शिकार कर अपना उदर भरता था। पूर्वसंचित कर्मो की प्रेरणा से, जिस समय बलराम जल लेने गये, उसी समय वह हरिण की खोज करता हुआ वहां आ पहुँचा और दूर से निद्राधीन कृष्ण को मृग समझकर उन पर एक तीक्ष्ण बाण छोड़ दिया। वह बाण कृष्ण के पैर में जा लगा। बाण लगते ही कृष्ण उठ बैठे। उन्होंने कहा-"अहो! मैं सर्वथा निरपराध हूँ। मुझे किसी प्रकार की सूचना दिये बिना छल पूर्वक मेरे पैर में यह बाण किसने मारा ? मैंने अपने जीवन में किसी पर भी उसका नाम और कुल जाने बिना शस्त्र प्रहार नहीं किया, इसलिए मैं अपने मारने वाले से भी अपना नाम और कुल बतलाने का अनुरोध करता हूँ।"