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408 * द्वारिका दहन और कृष्ण का देहान्त
उसके यह वचन सुनते ही जृम्भक देव उसे उठाकर प्रभु के पास ले गये। उस समय नेमिनाथ भगवान पल्लव देश में विराजमान हो रहे थे। वहां पुण्यात्मा कुब्जवारक ने दीक्षा ले ली। उसके सिवाय नगर में जितने मनुष्य थे, वे सभी उसमें स्वाहा हो गये। बलराम और कृष्ण की जिन स्त्रियों ने दीक्षा न ली थी, उन्होंने भी अनशन कर, नेमिनाथ भगवान का स्मरण करते हुए अपने प्राण त्याग दिये। समूची नगरी छ: मास तक जलती रही। जब सब कुछ स्वाहा हो गया वह कुबेर निर्मित सोने की द्वारिका मिट्टी में मिल गयी, तब समुद्र ने उस भस्मावशेष पर अपना शीतल जल छिड़क कर, उसे सदा के लिए शान्त कर . दिया।
उधर कृष्ण द्वारिका से प्रस्थान कर धीरे धीरे हस्तिकल्प नामक नगर में .. पहुँचे। उस समय वे क्षुधा से पीड़ित हो रहे थे। इसलिए उन्होंने बलराम से इसका जिक्र किया। इस पर बलराम ने कहा—“हे बन्धो! आप यहीं ठहरिए, मैं नगर में जाकर आपके लिए कुछ भोजन सामग्री लिये आता हूँ। यदि नगर में मुझे किसी प्रकार का कष्ट होगा, तो मैं सिंहनाद करूंगा। उसे सुनकर आप भी मेरी सहायता के लिए दौड़ आइएगा।"
इस प्रकार कृष्ण को सावधान कर बलराम नगर में गये। वहां नगर निवासी उनको देखते ही आपस में कानाफूसी करने लगे। वे कहने लगे कि यह देवता समान पुरुष बलराम के सिवाय और कोई नहीं हो सकता। मालूम होता है, कि द्वारिका नगरी जल जाने पर यह वहां से यहां चले आये हैं। ___राजा के गुप्तचरों ने भी बलराम का पीछा किया, किन्तु बलराम ने इन सब बातों का कोई ख्याल न किया। उन्होंने एक हलवाई को अपनी मुद्रिका देकर उससे विविध पक्कवान और एक कलाल को अपना कडा देकर उसके बदले में मदिरा ले ली। इसके बाद वे शीघ्र ही वहां से चल पड़े। जब वे नगर के द्वार पर पहुँचे, तब राजा के गुप्तचरों का सन्देह और भी दृढ़ हो गया। .
इस नगर में धृतराष्ट्र का अच्छदन्त नामक एक पुत्र राज्य करता था। युद्ध के समय पाण्डवों ने उसे जीता ही छोड़ दिया था। यह गुप्तचर उसी के थे, . इसलिए उन्होंने उसके पास पहुँचकर, उसे सब हाल कह सुनाया। साथ ही उन्होंने कहा कि—“इस पुरुष ने जो मुद्रिका और कडा हलवाई को दिया है,