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400 * द्वारिका दहन और कृष्ण का देहान्त ___द्वैपायन को भी यह हाल सुनकर बड़ा ही दुःख हुआ और उन्होंने भी राजकुमार की भांति इस दुर्घटना को रोकने का निश्चय किया। जराकुमार ने इसके लिए कृष्ण की रक्षा करने का और द्वैपायन ने द्वारिका तथा यादवों की रक्षा करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य को सफल बनाने के के लिए वे दोनों उसी दिन से वनवासी बन गये और द्वारिका नगरी का त्यागकर समीप के वन में निवास करने लगे।
इधर कृष्ण नेमिभगवान को वन्दन कर भवितव्यता का विचार करते हुए, नगर को लौट आये। इसके बाद वे सोचने लगे कि यह सब अनर्थ मद्य के ही कारण होगा, इसलिए पहले मद्यपान पर ही प्रतिबन्ध क्यों न लगा दिया जाय । यह सोचकर उन्होंने यादवों को आज्ञा दी कि—द्वारिका में जितना मद्य तैयार . हो, वह सब गिरनार की कादम्बरी नामक गुफा के कुण्ड में डाल आओ। यह सुनकर यादवगण उसी समय द्वारिका नगरी में गये और चारों ओर से खोज-- . खोजकर सारा मद्य उस कुण्ड में डाल आये। . ..
इसी समय सिद्धार्थ नामक सारथी ने बलराम से कहा- "हे प्रभो! द्वारिका नगरी और यदुकुल की यह दुरवस्था मैं अपनी आँखों से कैसे देख सकूँगा? मेरा हृदय तो उस प्रलयकाल की कल्पना से ही कांप उठता हैं। आप मुझे आज्ञा दीजिए, मैं इसी समय भगवान के पास जाकर दीक्षा ले लूं, क्योंकि यहां रहने का अब मुझे साहस ही नहीं होता।"
सिद्धार्थ की ये बातें सुनकर बलराम ने आँसू बहाते हुए कहा- “भाई! तुम यह क्या कहते हो? तुम्हें दीक्षा लेने की आज्ञा देते हुए मुझे बड़ा दुःख होता है, किन्तु इस सत्कार्य से मैं तुम्हें रोक भी नहीं सकता। खैर, तुम जाओ, लेकिन मृत्यु के बाद जब तुम्हें देवत्व प्राप्त हो, तब मुझे उपदेश देने के लिए तुम अवश्य आना। मुझे आशा है, कि मेरी इस बात पर तुम अवश्य ध्यान
दोगे।"
___ सिद्धार्थ ने इसके लिए बलराम को वचन देकर नेमिप्रभु के निकट दीक्षा ले ली। दीक्षा लेने के बाद छ: मास तक सिद्धार्थ ने दुस्तप तप किया। इसके बाद उसकी मृत्यु हो गयी और वह देवलोक का अधिकारी हुआ। . .
इधर द्वारिका निवासी यादव लोग शिलाकुण्ड में जो मदिरा डाल आये