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बीसवाँ परिच्छेद रिका दहन और कृष्ण का देहान्त
एक बार धर्मोपदेश के अन्त में विनीतात्मा कृष्ण ने श्रीनेमिनाथ भगवान को नमस्कार कर पूछा कि- "हे प्रभो! द्वारिका नगरी, समस्त यादव और मेरा क्षय किस प्रकार तथा किस कारण से होगा? हम लोगों का नाशं किसी दूसरे द्वारा होगा या काल के कारण हम लोगों की मृत्यु होगी?'
भगवान ने कहा-“हे कृष्ण! शौर्यपुर के बाहर एक आश्रम में पराशर नामक एक प्रधान तापस रहता था। उसने यमुनाद्वीप में जाकर किसी नीच कन्या का सेवन किया, फलत: उसके द्वैपायन नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ। द्वैपायन अब तक जीवित है। वह परम ब्रह्मचारी और परिव्राजक है। वह यादवों के साथ मैत्री भाव से यहां वास करेगा। एक दिन मद्यपान से उन्मत्त होकर शाम्ब आदिक उसे मारेंगे, जिससे वह क्रुद्ध होकर समस्त यादवों सहित द्वारिका को जला देने का नियाणा करेगा। फिर देव बनकर द्वारिका का नाश कर देगा और तुम्हारी मृत्यु तुम्हारे भाई जराकुमार के हाथ से होगी।"
भगवान ने मुख से अपने विनाश का यह हाल सुनकर कृष्ण तथा समस्त यादव कांप उठे। यादवगण उसी समय से जराकुमार को तिरस्कार दृष्टि से देखने लगे। इससे जराकुमार को भी बड़ा दुःख हुआ। वह अपने मन में कहने लगा-"क्या वसुदेव का पुत्र होकर मैं अपने भाई का वध करूंगा? नहीं नहीं, यह कदापि नहीं हो सकता। मेरे लिये इससे बढ़कर अप्रतिष्ठा की बात दूसरी नहीं हो सकती। मैं इस दुर्घटना को रोकने की चेष्टा अवश्य करूंगा।"