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श्री नेमिनाथ-चरित * 393 केवल कायक्लेश का फल हुआ है, क्योंकि उसने तो तुम्हारा ही अनुकरण किया है।"
इसके बाद कृष्णराज भगवान को प्रणाम कर, इन्हीं सब बातों पर विचार करते हुए अपने राज मन्दिर में लौट आये। ___ एक बार नेमिनाथ भगवान ने श्रोताओं को धर्मोपदेश देते हुए अष्टमी
और चतुर्दशी आदि पर्व दिनों का महात्म्य वर्णन किया। उसे सुन, कृष्ण ने हाथ जोड़कर प्रभु से पूछा- “हे स्वामिन् ! राज काज में व्यस्त रहने के कारण मैं समस्त पर्व दिनों की आराधना नहीं कर सकता, इसलिए मुझे एक ऐसा दिन बतलाइए, जो वर्ष भर में सर्वोत्तम हो!"
भगवान ने कहा- “ऐसा दिन तो मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का हैं। उस दिन तीर्थंकरों, के डेढ़ सौ कल्याणक हुए हैं। पूर्व काल में भी सुव्रत श्रेष्टी
आदि ने इसकी आराधना की है।" ..कृष्ण ने पूछा:- "हे जिनेन्द्र ! सुव्रत श्रेष्ठी कौन था?"
- भगवान ने इस प्रश्न के उत्तर में सुव्रत श्रेष्ठी का समस्त वृत्तान्त कृष्ण को कह सुनाया, जिसे सुनकर उन्हें अत्यन्त आश्चर्य हुआ। इसके बाद कृष्ण ने एकादशी के तप की विधि पूछी, जिसके उत्तर में भगवान ने मौन सहित गुणशादि विधि का वर्णन कह सुनाया। सुनकर कृष्ण को परम सन्तोष हुआ और उस समय से वे प्रतिवर्ष अपनी प्रजा के साथ मौन एकादशी के महापर्व की आराधना करने लगे।" - कृष्ण की एक रानी का नाम ढंढण था, जिसके उदर से ढंढण नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। युवावस्था प्राप्त होने पर ढंढण ने अनेक राजकुमारियों के साथ विवाह किया। एक बार भगवान का धर्मोपदेश सुनकर उसे वैराग्य आ गया। इससे कृष्ण ने उसका दीक्षा महोत्सव कर, उसे दीक्षा दिला दी। उस दिन से ढंढण नेमिप्रभु के साथ विचरण करने लगा और अपनी धर्मनिष्ठा के कारण वह अनेक साधुओं का प्रियपात्र हो पड़ा।
इतने में उसका अन्तराय कर्म उदय हुआ, इसलिए वह जहां जहां गया, वहीं उसे आहार पानी की कुछ भी सामग्री प्राप्त न हो सकी। उसके साथ जितने गये, उन सबों को भी इसी तरह निराश होना पड़ा। यह देखकर उन मुनियों ने