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श्री नेमिनाथ-चरित * 351 · सत्यभामा की यह बातें सुनकर नेमिकुमार कुछ विचार में पड़ गये। इतने ही में जाम्बवती उनके पास आकर कहने लगी—“हे देवर! तुम्हारे वंश में मुनिसुव्रत् तीर्थकर हो गये हैं। वे भी विवाहित और पुत्र परिवार वाले थे। इसी तरह प्राचीन काल में और भी अनेक महापुरुष ऐसे हुए हैं, जो विवाह करने पर भी मोक्ष के अधिकारी हुए हैं। मैं देखती हूँ कि तुम्ही एक ऐसे अनोखे मुमुक्षु उत्पन्न हुए हो, जो पूर्व प्रचलित प्रथा को छोड़कर जन्म से ही स्त्री से विमुख हो बैठे हो!"
जाम्बवती को यह सब बातें कहते देख, सत्यभामा ने बाह्य कोप दिखाकर कहा-“सखी! तुम इन्हें मधुर वचनों से क्या समझाती हो? यह सीधी तरह बात मानने वाले नहीं है, क्योंकि इनके पिता, बड़े भाई तथा अन्यान्य लोगों ने भी ब्याह के लिए इन्हें कई बार समझाया है, परन्तु इन्होंने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया है। आओ, आज हम सब लोग चारों ओर से इनको घेर लें और तब तक इन्हें कहीं जाने न दें, जब तक यह हमारी बात न मान लें। .
यह सुनकर लक्ष्मणा ने लल्लो चप्पो करते हुए कहा-“सखी! ऐसी बातें क्यों कहती हो? यह देवर तो आराधना करने योग्य हैं। इन्हें तंग न कर, समझा बुझाकर ही ब्याह के लिए राजी करना चाहिए।" . . . इसके बाद रुक्मिणी आदि कृष्ण की अनेक पत्नियां ब्याह के लिए प्रार्थना करती हुई नेमिकुमार के चरणों पर गिर पड़ी। उचित अवसर देखकर कृष्ण ने भी इसी समय उनसे बहुत अनुरोध किया। अन्यान्य यादव, जो यह सब देख रहे थे, वे भी आग्रह पूर्वक कहने लगे—“हे नेमिकुमार! तुम्हें अपने भाई की यह बात मान लेनी चाहिए। तुम्हारे माता पिता तथा अन्यान्य स्वजनों को भी इससे आनन्द और परम सन्तोष होगा।" ___इस प्रकार सबके कहने पर नेमिकुमार बड़ी चिन्ता में पड़ गये। वे अपने मन में कहने लगे-“अहो! यह लोग कितने अज्ञानी हैं। इस अज्ञानता के कारण यह लोग स्वयं तो भवसागर में पड़ते ही हैं, दूसरों को भी स्नेह रूपी पाषाण शिला बांधकर उसमें घसीट ले जाते हैं खैर इन लोगों का अब इतना आग्रह है तो वचन द्वारा मुझे स्वीकृति देनी ही होगी। फिर यथासमय