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श्री नेमिनाथ - चरित
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इधर यशोमती का जीव अपराजित विमान से च्युत होकर उग्रसेन राजा की धारिणी रानी के उदर में आया था। गर्भकाल पूर्ण होने पर उसने एक सुन्दर 'पुत्री को जन्म दिया था। पिता ने उसका नाम राजीमती रक्खा था । माता पिता के लालन पालन से यह शीघ्रता पूर्वक बड़ी हो गयी थी ।
इधर द्वारिका निवासी धनसेन श्रेष्ठी ने अपनी कमलामेला नामक पुत्री का ब्याह उग्रसेन के पुत्र नभसेन के साथ करना स्थिर किया । जिस समय यह बातचीत चल रही थी, उसी समय कहीं से घूमते घामते नारदमुनि नभसेनकुमार के घर आ पहुँचे। उस समय नभसेन अन्य कार्य में फँसा था, इसलिए वह नारदमुनि का सत्कार न कर सका। इससे नारदमुनि उस पर असन्तुष्ट हो गये और उन्होंने उसे विपत्ति में डाल देने का संकल्प किया। वे उसी समय सागरचन्द्र के घर गये। सागरचन्द्र शाम्ब आदि का मित्र था और उन्हें अत्यन्त प्रिय भी था। सागरचन्द्र ने नारदमुनि का सत्कार कर उनसे पूछा - "हे मुनिराज ! आप रात दिन सर्वत्र विचरण करते हुए आश्चर्य जनक चीजें देखा करते हैं। यदि कहीं कोई कौतुक दिखायी दिया हो तो उसका वर्णन कीजिए । "
" नारदमुनि ने कहा – “मैंने एक आश्चर्यजनक वस्तु आज इसी नगर में देखी है और वह धनसेन श्रेष्ठी की पुत्री कमलामेला है। वह बड़ी ही रूपवती है । ऐसी रूपवती कन्याएं देव और विद्याधरों के यहाँ भी शायद ही दिखायी देती हैं। शीघ्र ही नभसेन के साथ उसका विवाह भी होने वाला है । "
इतना कह नारदमुनि तो वहां से चल दिये, किन्तु सागरचन्द्र उसी क्षण मलाला पर अनुरक्त हो गया । उठते बैठते उसीका चिन्तन करने लगा ।
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जिस प्रकार पीत रोग से पीड़ित मनुष्य को सर्वत्र पीला ही पीला दिखायी देता है, उसी तरह उसे सर्वत्र कमलामेला ही दिखायी देने लगी। उसकी जिह्वा पर भी मन्त्र की भांति सदा उसीका नाम रहने लगा ।
इस प्रकार सागरचन्द्र को व्याकुल बनाकर कूटमति नारद कमलामेला के घर गये। उसने भी नारदमुनि को प्रणाम कर उनसे आश्चर्यजनक वस्तुओं के सम्बन्ध में प्रश्न किया। इस पर नारदमुनि ने मुस्कुराकर कहा-' - "हे भद्रे ! मैंने आज ही यहां दो आश्चर्य, देखे हैं एक आश्चर्य कुमार सागरचन्द्र है, जिससे बढ़कर कोई दूसरा रूपवान नहीं और दूसरा आश्चर्य नभसेन है, जिससे बढ़कर