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सविधिनाथ एवं गर्भ समय में माता को पुष्प का दोहला उत्पन्न हुआ था। इससे उनका दूसरा नाम पुष्पदंत रखा गया।
. युवा होने पर माता-पिता के आग्रह से भगवान ने अनेक राजकन्याओं के साथ विवाह किया। वे ५० हजार पूर्व तक युवराज रहे। इसके बाद २८ पूर्वांग सहित ५० हजार पूर्व तक उन्होंने राज्य किया। फिर एक समय लोकांतिक देवों ने आकर विनती की – 'हे प्रभु! अब जगत के जीवों के हितार्थ दीक्षा धारण कीजिए।' तब प्रभु ने वर्षीदान देकर मार्गशीर्ष वदि ६ के दिन मूल नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ सहसाम्रवन में जाकर दीक्षा धारण की। इंद्रादि देवों ने दीक्षाकल्याणक उत्सव किया। वेतपुर के राजा पुष्प के घर दूसरे दिन प्रभु ने पारणा किया।
___वहां से विहार कर चार मास बाद भगवान उसी उद्यान में आये। और मालुर वृक्ष के नीचे कार्योत्सर्ग कर कार्तिक सुदि ३ मूल नक्षत्र में उन्होंने चार घातिया कर्मों को नष्ट कर केवल ज्ञान पाया।
प्रभु का परिवार इस प्रकार था, ८८ गणधर, २ लाख साधु, ३ लाख साध्वियां, ८ हजार ४ सौ अवधिज्ञानी, डेढ़ हजार चौदह पूर्वधारी, साढे सात हजार मनःपर्ययज्ञानी, ७ हजार ५ सौ केवली, १३ हजार वैक्रिय लब्धिधारी४, ६ हजार वादी, २ लाख २६ हजार श्रावक और ४ लाख ७१ हजार श्राविकाएँ तथैव अजित नामक यक्ष व सुतारा नाम की शासन देवी।
मोक्षकाल पास जानकर पुष्पदंत स्वामी सम्मेदशिखर पर पधारें। और वहां उन्होंने एक हजार मुनियों के साथ एक मास का अनशन धारण किया। अंत में योग निरोध कर भाद्रवा सुदि ६ के दिन मूल नक्षत्र में पुष्पदंतजी सिद्ध हुए। इंद्रादि देवों ने निर्वाण कल्याणक मनाया।
___पुष्पदंतजी की कुल आयु २ लाख पूर्व की थी, उसमें से उन्होंने आधा लाख पूर्व युवराज पद में, २८ पूर्वांग सहित आधा लाख पूर्व राज्यकाल में, २८ पूर्वांग न्यून एक लाख पूर्व साधुपन में बिताया। फिर वे मोक्ष गये। उनका शरीर १०० धनुष ऊंचा था।
चंद्रप्रभु के निर्वाण जाने के बाद ६० कोटि सागरोपम बीतने पर
: श्री पुष्पदंत (सुविधिनाथ) चरित्र : 82 :