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________________ देखा। गर्भ के प्रभाव से राणी को दया पलवाने का और अठाई उत्सव कराने का दोहद हुआ। राजा ने वह दोहद पूर्ण करवाया। समय पर पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम पुरुषसिंह रखा गया। जब वह जवान हुआ तब राजा ने उसे आठ राजकन्याएँ ब्याह दीं। एक दिन कुमार उद्यान में फिरने गया। वहां उसने विनयनंदन नाम के युवक आचार्य को देखा। उनका उपदेश सुन उसे वैराग्य हुआ। कुमार ने मातापिता से आज्ञा लेकर दीक्षा ले ली और वीस स्थानकों में से कई स्थानों की आराधना कर तीर्थंकर गोत्र बांधा। दूसरा भव :-. आयु पूर्ण होने पर पुरुष सिंह का जीव वैजयंत विमान में महर्द्धिक देवता हुआ। उसने तेतीस सागरोपम की आयु भोगी। तीसरा भव : जंबूद्वीप में विनीता (अयोध्या) नाम की नगरी में मेघ नाम का राजा था। उसकी राणी मंगलादेवी को चौदह स्वप्न सहित गर्भ रहा। पुरुष सिंह का जीव वैजयंत विमान से च्यवकर श्रावण सुदि २ के दिन मघा नक्षत्र में रानी के गर्भ में आया। इंद्रादि देवों ने च्यवन कल्याणक किया। नौ महिने और साढ़े सात दिन बीतने पर वैशाख सुदि ८ के दिन चंद्र नक्षत्र में मंगला देवी ने क्रोच पक्षी के चिह्नवाले पुत्ररत्न को जन्म दिया। छप्पन दिक्कुमारी एवं इंद्रादि देवों ने जन्मकल्याणक किया। पुत्र का नाम सुमतिनाथ रखा गया। कारण - एक बार रानी ने, ये गर्भ में थे तब, एक ऐसा न्याय किया था जो किसीसे नहीं हो सका था। . युवा होने पर प्रभु ने माता-पिता के आग्रह के कारण अनेक स्त्रियों से ब्याह किया, राज्य किया और फिर वैराग्य उत्पन्न होने पर वर्षीदान दे वैशाख सुदि € के दिन मघा नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा ले ली। इंद्रादि देवों ने दीक्षा कल्याणक उत्सव किया। दूसरे दिन विजयपुर के राजा पद्मराज के घर पारणा किया। : श्री तीर्थंकर चरित्र : 71 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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