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________________ प्रतिबोध करेंगे। इसलिए उस समय तक अगर कोई यह कहे कि धर्म नहीं है तो वह संघ बाहर किया जाय।' - 'दुःप्रसहाचार्य बारह वर्ष तक घर में रहेंगे और आठ वर्ष तक साधुधर्म पाल अंत में अट्ठम तप करेंगे और आयु पूर्ण कर सौधर्म देवलोक में जायेंगे। उस दिन सबेरे चारित्र का, मध्याह्न में राजधर्म का और संध्या को अग्नि का उच्छेद होगा। इस तरह इक्कीस हजार वर्ष प्रमाण का दुःखमा काल पूरा होगा। 'फिर इक्कीस हजार वर्ष वाला एकांत दुःखमा नाम का.छट्ठा आरा शुरू होगा। वह भी इक्कीस हजार वर्ष तक रहेगा। उसमें धर्म-तत्त्व नष्ट होने से चारों तरफ हाहाकार मच जायगा. पशुओं की तरह मनुष्यों में भी माता और पुत्र की व्यवस्था नहीं रहेगी। रात दिन सख्त हवा चलती रहेगी। बहुत धूल उड़ती रहेगी। दिशाएँ धूएँ के जैसी होने से भयानक लगेंगी। चंद्रमा में अत्यंत शीतलता और सूरज में अत्यंत तेज धूप होगी। इससे बहुत ज्यादा सर्दी और बहुत ज्यादा गरमी के कारण लोग अत्यंत दुःखी होंगे। 'उस समय विरस बने हुए मेघ खारे, खट्टे विषेले विषाग्निवाले और वज्रमय होकर, उसी रूप में वृष्टि करेंगे। इससे लोगों में खांसी, वास, शूल, कोढ़, जलोदर, बुखार, सिरदर्द और ऐसे ही दूसरे अनेक रोग फैल जायेंगे। जलचर, स्थलचर और खेचर तिर्यंच भी महान दुःख में रहेंगे। खेत, वन, बाग, बेल, वृक्ष और घास का नाश हो जायगा। वैताढ्य और ऋषभकूट पर्वत एवं गंगा और सिंधु नदियां रहेंगे। दूसरे सभी पहाड़, खड्डे और नदियां समतल हो जायेंगे। भूमि कहीं अंगारों के समान दहकती, कहीं बहुत धूलवाली और कहीं बहुत कीचड़वाली होगी। मनुष्यों के शरीर दो हाथ प्रमाण वाले और खराब रंगवाले होंगे। उत्कृष्ट आयु पुरुषों की बीस वर्ष की और औरतों की सोलह वर्ष की होगी। उस समय स्त्री छः बरस की उम्र में गर्भधारण करेगी और प्रसव के समय अत्यंत दुःखी होगी। सोलह वर्ष की उम्र में तो वह बहुत से बालबच्चों वाली होगी और वृद्धा गिनी जायगी। वैताढ्य गिरि के नीचे उसके पास बिलों में लोग रहेंगे। गंगा और : श्री महावीर चरित्र : 292 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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