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________________ प्रभु ने उत्तर दिया – 'इनका तेज पहले बहुत था; इस समय कम है। इनके पुण्य की अधिकता के कारण इनका तेज एक दम चला नहीं गया है।' मेंडक से देव : उसी समय एक कोढ़ी पुरुष आकर वहां बैठा और अपने शरीर से झरते हुए कोढ़ को पोंछ-पोंछकर प्रभु के चरणों में लगाने लगा। यह देखकर श्रेणिक को बहुत क्रोध आया। प्रभु का इस तरह अपमान करनेवाला उन्हें वध्य मालूम हुआ; परंतु प्रभु के सामने वे चुप रहे। उन्होंने सोचा – 'जब यह यहां से उठकर जायगा तब इसका वध करवा दूंगा। प्रभु को छींक आयी। कोढ़ी बोला – 'मरो! कुछ क्षणों के बाद राजा श्रेणिक को छींक आयी। कोढ़ी बोला – 'चिर काल तक जीते रहो।' कुछ देर के बाद अभयकुमार को छींक आयी। कोढ़ी बोला – 'मरो या जीओ।' उसके बाद कालसौकरिक को छींक आयी। कोढ़ी बोला – 'न जी, न मर।' . कोढ़ी ने जब महावीर स्वामी को कहा कि मरो। तब तो श्रेणिक के क्रोध का कोई ठिकाना ही न रहा। उसने अपने सुभटों को हुक्म दिया कि यह कोढ़ी जब बाहर निकले तब इसे कैद कर लेना। - थोड़ी देर के बाद कोढ़ी बाहर निकला। सुभटों ने उसे घेर लिया; मगर सुभदों को अचरज में डाल, दिव्यरूप धारण कर वह कोढ़ी आकाश में उड गया। . सुभटों ने आकर श्रेणिक को यह हाल सुनाया। श्रेणिक अचरज में पड़े। उन्होंने प्रभु से पूछा – 'प्रभो! वह कोढ़ी कौन था?' . महावीर बोले – 'वह देव था।' श्रेणिक ने पूछा – 'तो वह कोढ़ी कैसे हुआ?' 'अपनी देवी-माया से।' कहकर प्रभु ने उसकी जीवन कथा सुनायी और कहा - 'देव से पहले की इसकी योनी मेंडक की थी। इसी शहर के बाहर की बावड़ी में यह रहता था। जब हम यहां आये तो लोग हमें वंदना करने आने लगे। पानी भरनेवाली स्त्रियों को हमारे आने की बातें करते इसने : श्री तीर्थंकर चरित्र : 279 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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