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________________ था। इसके पास ३ करोड़ स्वर्णमुद्राएँ और १० हजार गायों का एक गोकुल था। शहर के बाहर उसकी पांच सौ दुकानें थीं। ८. महाशतक - यह राजगृह का रहनेवाला था। इसके पास २४ करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ और ८० हजार गायों के आठ गोकुल थे। ६. नंदिनीपिता - यह श्रावस्ती का रहनेवाला था। इसके पास १२ करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ और ४० हजार गायों के ४ गोकुल थे। १०. शालिनी पिता - यह श्रावस्ती का रहने वाला था। इसके पास १२ ___ करोड स्वर्ण मुद्राएँ और ४० हजार गायों के ४ गोकुल थे। महावीर स्वामी पर गोशालक का तेजोलेश्या रखना : महावीर स्वामी विहार करते हुए श्रावस्ती नगरी में आये और वहां कोष्टक नामक उद्यान में समोसरे। वहीं अपने आपको जिन कहनेवाला गोशालक भी आया हुआ था। और वह हालाहल नामक कुम्हारिन की दुकान में ठहरा हुआ था। गौतम स्वामी ने यह बात सुनी और महावीर स्वामी से पूछा – 'प्रभो! इस नगरी में गोशालक को जिन कहते हैं। यह योग्य है या अयोग्य?' महावीर स्वामी ने उत्तर दिया - 'यह बात अयोग्य है; क्योंकि वह जिन नहीं है।' गौतम स्वामी ने पूछा - 'वह कौन है?' महावीर स्वामी बोले - 'वह मेरा एक पुराना शिष्य है। मंख का पुत्र है। अष्टांग निमित्त का ज्ञान प्राप्त कर उससे लोगों के दिल की बात कहता है। मुझसे तेजोलेश्या की साधना सीख, उसे साधा है और अब मिथ्यात्वी हो तेजोलेश्या से अपने विरोधियों का दमन करता है।' . समवसरण में ये प्रश्नोत्तर हुए थे। इससे शहर के लोगों ने भी ये बातें सुनी थी। लोग चर्चा करने लगे, महावीर स्वामी कहते हैं कि गोशालक जिन नहीं है। वह तो मंख का बेटा है। गोशालक ने ये बातें सुनीं। वह बड़ा गुस्से हुआ। वह जब अपने स्थान में बैठा हुआ था तब उसने महावीर स्वामी के शिष्य आनंद मुनि को, जाते देख, बुलाया और तिरस्कार पूर्वक कहा – 'हे आनंद! तूं जाकर अपने : श्री तीर्थंकर चरित्र : 271 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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