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उनका फल, बिना पूछे ही कहा।' फिर सभी महावीर स्वामी के धैर्य व तप की तारीफ करते हुए अपने-अपने घर गये। . महावीर स्वामी ने अर्द्ध अर्द्ध मासक्षपण करके चातुर्मास व्यतीत किया। चौमासा समाप्त होने पर वे अन्यत्र विहार कर गये। जब प्रभु विहार करने लगे तब यक्ष ने महावीर स्वामी के चरणों में नमस्कार किया और कहा- 'हे नाथ! आपके समान कौन उपकारी होगा कि जिसने अपने सुख की ही नहीं बल्के जीवन की भी परवाह न करके मुझे सन्मार्ग में लगाने के लिए, मेरे स्थान में रहकर मुझ पापी ने जो कष्ट दिये वे सब शांति से रहे। प्रभो! मेरे अपराधों की क्षमा कीजिए।' निर्वैर महावीर स्वामी उसे आश्वासन . देकर अन्यत्र विहार कर गये।
1. स्वप्न और उनके फल इस प्रकार हैं -
१. पहले स्वप्न में ताड़वृक्ष के समान पिशाच को मारा; इसका यह अभिप्राय है कि आप मोह का नाश करेंगे। २. दूसरे स्वप्न में सफेद पक्षी 'देखा; इससे
आप शुक्लध्यान में लीन होंगे। ३. तीसरे स्वप्न में आपने आपकी सेवा करता हुआ कोकिल देखा; इससे आप द्वादशांगी का उपदेश देंगे। ४. चौथे स्वप्न में आपने गायों का समूह देखा; जिससे आपके साधु, साध्वी और श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ होगा। ५. पांचवें स्वप्न में आप समुद्र तैर गये; इसका मतलब यह है कि आप संसार-सागर को तैरेंगे। ६. छटे स्वप्न में उगता सूर्य देखा; इससे थोड़े ही समय में आपको. केवलज्ञान प्राप्त होगा। ७. सातवें स्वप्न में मानुषोत्तर पर्वत को आंतों से लिपटा हुआ देखा; इससे आपकी कीर्ति दिग्दिगांत में फैलेगी। ८. आठवें स्वप्न में मेरु पर्वत के शिखर पर चढे; इससे आप समवसरण के अंदर सिंहासन पर बैठकर धर्मोपदेश देंगे। ९. नवें स्वप्न में पद्म सरोवर देखा; इससे सारे देवता आपकी सेवा करेंगे। १०. दसवें स्वप्न में फूलों की दो मालाएँ देखी; इसका मतलब निमित्तज्ञानी न समझ सका इसलिए महावीर स्वामी ने खुद बताया कि- मैं साधु और गृहस्थ का ऐसे दो तरह का धर्म बताऊंगा। नोट :- स्वप्नों का क्रम कल्पसूत्र के अनुसार दिया है। त्रिषष्ठिशलाका पुरुष
चरित्र में दसवां स्वप्न चौथा है और नवाँ स्वप्न छट्ठा है। 2. आधा महीना यानी पंद्रह दिन उपवास करके पारणा करना; फिर. पंद्रह दिन
उपवास करके पारणा करना। इस तरह चौमासे के साढ़े तीन महीने में प्रभु ने केवल छ: बार आहारपानी लिया था।
: श्री महावीर चरित्र : 220 :