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________________ आधे देवदूष्य वस्त्र का दान : जब प्रभु विहार करने के लिए चले तब रस्ते में 'सोम' नाम का एक ब्राह्मण मिला। वह बोला – 'हे प्रभु! आपके दान से सारा जगत (मगधदेश?) दरिद्रता से मुक्त हो गया है। मैं ही भाग्यहीन हूं कि मेरी दरिद्रता अब तक न गयी। प्रभो! मेरी निर्धनता भी दूर कीजिए।' प्रभु बोले – 'हे विप्र! मेरे पास इस समय कुछ नहीं है। देवदूष्य वस्त्र है। इसका आधा तूं ले जा।' सोम ब्राह्मण! आधा देवदूष्य वस्त्र फाड़कर ले गया। ब्राह्मण जब वह कपड़ा तूननेवाले के पास ले गया तब उसने कहा'हे ब्राह्मण! अगर तूं इसका आधा भाग ले आयगा तो इसकी कीमत एक लाख दीनार (सोने का सिक्का) मिलेगी।' ब्राह्मण वापिस महावीर स्वामी के पास गया। उनके साथ-साथ वह तेरह महीने तक फिरा। बाद में एक दिन प्रभु जब मोराक गांव से उत्तर वाचाल नामके गांव को जाते थे तब रास्ते में 'सुवर्णवालुका' नाम की नदी के किनारे झाडों में उनका आधा देवदूष्य वस्त्र फंस गया। ब्राह्मण ने तुरत दौड़कर वह वस्त्र उठा लिया। प्रभु ने पीछे फ़िर कर देखा और ब्राह्मण को वस्त्र उठाते देख आगे का रास्ता लिया। ब्राह्मण वह वस्त्रार्द्ध लेकर तूननेवाले के पास गया। तूननेवाले ने दोनों टुकड़ों को बेमालूम तूना और तब एक लाख दीनार में उस वस्त्र को बेच दिया। ब्राह्मण और तूननेवाला दोनों ने पचास पचास हजार दीनार ले ली। (गवाल-कृत उपसर्ग) : प्रभु दीक्षा लेकर पहले दिन कुमार' गांव में पहुंचे। वहां गांव के बाहर कायोत्सर्ग करके रहे। एक गवाल शाम को वहां आया और अपने बैलों को वहीं छोड़कर गांव में गायें दुहने चला गया। बैल फिरते हुए कहीं जंगल में चले गये। जब गवाला वापिस आया तब वहां बैल नहीं थे। उसने महावीर 1. क्षत्रियकुंड अथवा वैशाली से नालंदा जाते समय रास्ते में लगभग १७-१८ माइल पर एक कुस्मर नाम का गांव है। संभवत: यही गांव पहले 'कुमार' नाम से प्रसिद्ध हो। (दश उपासको पेज ३६) : श्री तीर्थंकर चरित्र : 213 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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