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________________ कहिये आप ही महाराज सुवर्णबाहु हैं न?' राजा मुस्कुरा दिया। बालाओं को निश्चय हो गया कि ये ही महाराज सुवर्णबाहु है। राजा ने सबसे अधिक सुंदरी बाला की तरफ संकेत करके पूछा'ये बाला कौन है? ये तापसकन्या तो नहीं मालूम होती। इनका शरीर पौदों के जलसिंचन करने के काम का नहीं है। कहो ये कौन है?' एक बाला दीर्घ निःश्वास डालकर बोली – 'ये रत्नपुर के राजा खेरचरेन्द्र की कन्या है। इनका नाम पद्मा है और इनकी माता का नाम रत्नावली है। जब खेचरेंद्र का देहांत हो गया तब उनके पुत्र राज्य के लिए आपस में लड़ने लगे। इससे सारे देश में बलवा मच गया। रत्नावली अपनी कन्या को लेकर अपने कुछ विश्वस्त मनुष्यों के साथ वहां से निकल भागी और यहां, तापसों के कुलपति गालव मुनि के आश्रम में, आ रही। आश्रम में रहनेवाले सभी स्त्रीपुरुषों को काम करना पड़ता है। इसलिए हमारी सखी राजकुमारी पद्मा को भी काम करना पड़ता है। कल इधर कोई दिव्य ज्ञानी आये थे और उन्होंने कहा था – 'रत्नावली! तुम चिंता न करो। तुम्हारी कन्या चक्रवर्ती सुवर्णबाहु की रानी होगी। उसे उसका घोड़ा बेकाबू होकर यहां ले आयगा।' महाराज! ज्ञानी की बात आज सच हुई है?' - राजा ने पूछा – 'श्रीमतीजी! आपका नाम क्या है? और गालव मुनि अभी कहां गये हैं?' उसने उत्तर दिया – 'महाराज! मेरा नाम नंदा है। गालब मुनि उन्हीं ज्ञानी मुनि को पहुंचाने गये हैं, जिनका मैंने अभी जिक्र किया है।' ____ इतने ही में दूर घोड़ों की टापें सुनाई दी और धूल उड़ती नजर आयी। राजा ने समझा – 'संभवतः मेरे आदमी मुझे ढूंढते हुए आ पहुंचे हैं। चलूं उनसे मिलकर उन्हें संतोष दूं। सुवर्णबाहु चले। सुनंदा पद्मा को लेकर झोंपड़ी में गयी। राजा अपने आदमियों को बाहर सरोवर के किनारे बैठने की सूचना कर वापिस बगीचे में आ बैठा। ____ नंदा ने जाकर गालव ऋषि को - जो उसी समय लौटकर आ गये थे-सुवर्णबाहु के आने के समाचार सुनाये। गालव मुनि खुश हुए। वे रत्नावली, : श्री तीर्थंकर चरित्र : 181 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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