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________________ नाम के नरक में, बाईस सागरोपम की आयु और ढाई सौ धनुष की कायावाला नारकी जीव हुआ। छट्ठा भव : जंबूद्वीप के पश्चिम महाविदेह में सुगंध नाम की विजय है। उसमें शुभंकरा नाम की एक नगरी है। उसमें वज्रवीर्य नाम का राजा राज्य करता था। उसकी लक्ष्मीवती नाम की रानी के गर्भ से मरुभूमि का जीव देवलोक से च्यवकर जन्मा। उसका नाम वज्रनाभ रखा गया। युवा होने पर ब्याह हुआ। कुछ काल के बाद वज्रवीर्य राजा ने वज्रनाभं को राज्यं देकर दीक्षा ले ली। वज्रनाभ के कुछ काल के बाद चक्रायुध नाम का पुत्र हुआ। जब वह बड़ा हुआ तब राजा वज्रनाभ ने चक्रायुध को राज्य ट्रेकर क्षेमंकर तीर्थंकर के पास दीक्षा ले ली। अनेक तरह की तपस्याएँ करने से मुनि को आकाशगमन की लब्धि मिली। एक बारं वज्रनाभ मुनि आकाशमार्ग से सुकच्छ विजय में गये। कमठ का जीव भी नरक से निकल कर सुकच्छ विजय के ज्वलन गिरि के भयंकर जंगल में भील के घर जन्मा। उसका नाम कुरंगक रखा गया। जब वह जवान हुआ तब महान शिकारी बना। वज्रनाभ मुनि फिरते हुए ज्वलनगिरि की गुफा में जाकर कायोत्सर्ग करके रहे। नाना भांति के भयावने पशुपक्षी रातभर बोलते और उनके आसपास फिरते रहे; परंतु मुनि स्थिर रहे और ध्यान से चलित न हुए। सवेरे ही जिस समय वे कायोत्सर्ग छोड़कर गुफा में से निकले उसी समय कुरंगक नाम का भील भी धनुषबाण लेकर घर से रवाना हुआ। उसे सामने मुनि दिखे। उन्हें देखकर भील को बड़ा गुस्सा आया। इस भिक्षुक ने सवेरे ही सवेरे मेरा शकुन बिगाड़ दिया है, यह सोचकर उसने उन्हीं को सबसे पहले अपने बाण का निशाना बनाया। बाण लगते ही वे अर्हत पुकारकर पृथ्वी पर गिर पड़े। सब जीवों से उन्होंने क्षमत क्षामणा किये और मन को सब तरह से व्यापारों से हटाकर आत्मध्यान में लीन कर दिया। : श्री पार्श्वनाथ चरित्र : 178 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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