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है ?' मरुभूमि को मुनि के उपदेश से जातिस्मरण ज्ञान हो गया। वह मुनि से श्रावक व्रत अंगीकार कर रहने लगा । कमठ की स्त्री वरुणा भी हथिनी हुई थी। उसने भी सारी बातें सुनीं और उसे भी जातिस्मरण ज्ञान हो आया। सेठ के साथ के अनेक मनुष्य तप का प्रभाव देखकर मुनि हो गये। संघ वहां से अष्टापद की तरफ चला गया।
अब मरुभूमि हाथी संयम से रहने लगा। वह सूर्य के आताप से तपा हुआ पानी पीता और पृथ्वी पर गिरे हुए सूखे पत्ते खाता । ब्रह्मचर्य से रहता और कभी किसी प्राणी को नहीं सताता । रातदिन वह सोचता- मैंने कैसी भूल की कि, मनुष्य भव पाकर उसे व्यर्थ खो दिया। अगर मैंने पहले समझकर संयम धारण कर लिया होता तो यह पशु पर्याय मुझे नहीं मिलती।
संयम के कारण उसका शरीर सूख गया था। उसकी शक्ति क्षीण हो गयी थीं। वह ईर्या समिति के साथ चलता था और एक कीड़ी को भी तकलीफ न हो इस बात का पूरा ध्यान रखता था ।
एक दिन पानी पीने गया। वहीं दलदल में फंस गया। उससे निकला न गया। उधर कमठ के उस हत्यारे काम से सारे तापस उससे नाराज हुए और उसे अपने यहां से निकाल दिया। वह भटकता हुआ मरकर साँप हुआ। वह सांप फिरता हुआ वहां आ निकला जहां मरुभूमि हाथी फंसा हुआ था। उसने मरुभूमि को देखा और काट खाया।
तीसरा भव (सहस्रार देवलोक में देव ) :
मरुभूमि ने अपना मृत्युकाल समीप जान सब माया-ममतादि का त्याग कर दिया। मरकर वह सहस्रार देवलोक में संग्रह सागरोपम की आयुवाला देव हुआ। हथिनी वरुणी भी भाव तप कर मरी और दूसरे देवलोक में देवी हुई। फिर वह दूसरे देवलोक के देवों को छोड़ सहस्रार देवलोक में मरुभूमि के जीव देव की देवांगना बनकर रही । कमठ का जीव भी मरकर पांचवें नरक में सत्रह सागरोपम की आयुवाला नारकी हुआ।
चौथा भव (किरण वेग ) :
प्राग्विदेह के सुकच्छ नामक प्रांत में तिलका नाम की नगरी थी।
: श्री पार्श्वनाथ चरित्र : 176 :