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________________ का चिह्न था। गर्भकाल में माता मुनियों की तरह सुव्रता (अच्छे व्रत पालनेवाली) हुई थी। इससे पुत्र का नाम मुनिसुव्रत रखा गया। पुत्र के युवा होने पर माता-पिता ने अत्याग्रह कर प्रभावती आदि अनेक राजकन्याओं के साथ ब्याह कराया। प्रभावती से सुव्रत नामक पुत्र हुआ। राजा सुमित्र ने दीक्षा ली। मुनिसुव्रत राजा हुए और १५ हजार वर्ष तक राज्य किया। फिर लौकांतिक देवों ने प्रार्थना की जिससे उन्होंने वर्षीदान दे, सुव्रत पुत्र को राज्य सौंप, फाल्गुन सुदि १२ के दिन श्रवण नक्षत्र नीलगुहा नामक उद्यान में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण की। इंद्रादि देवों ने दीक्षाकल्याणक मनाया। दूसरे दिन मुनिसुव्रत स्वामी ने ब्रह्मदत्त राजा के यहां पारणा किया। चंपा चिर काल तक अन्यत्र विहार कर वे वापिस उसी उद्यान में आये। वृक्ष 'के नीचे उन्होंने कार्योत्सर्ग धारण किया और घातिया कर्मों का नाश कर फाल्गुन वदि १२ के दिन श्रवण नक्षत्र में केवलज्ञान प्राप्त किया। इंद्रादि देवों ने ज्ञानकल्याणक मनाया। एक समय ६० योजन का विहार कर प्रभु भृगुकच्छ (भडूच) नगर में आये। वहां समोशरण की रचना हुई, प्रभु उपदेश देने लगे। उस नगर का राजा ि शत्रु घोड़े पर चढ़कर दर्शनार्थ आया। राजा अंदर गया। घोड़ा बाहर खड़ा रहा। घोड़े ने भी कान ऊंचे कर प्रभु का उपदेश सुना। उपदेश समाप्त होने पर गणधर ने पूछा- 'इस समोशरण में किसी ने धर्म पाया?' प्रभु ने उत्तर दिया- 'जितशत्रु राजा के घोड़े के सिवा और किसीने भी धर्म धारण नहीं किया।' जितशत्रु राजा ने पूछा - 'यह घोड़ा कौन है सो कृपा करके कहिए।' प्रभु ने उत्तर दिया 'पद्मनी खंड नगर में जिनधर्म नाम का एक सेठ था। उसका सागरदत्त नाम का मित्र था। वह हमेशा जैनधर्म सुनने आया करता था। एक दिन उसने व्याख्यान में सुना कि जो अर्हत्बिम्ब बनवाता है, वह जन्मांतर में संसार का मंथन करनेवाले धर्म को पाता है। वह जानकर सागरदत्त ने : श्री मुनिसुव्रत चरित्र : 140 : -
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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