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________________ क्यों स्मरण नहीं करते हैं और क्यों नहीं संसार की माया से छूटते हैं? उन लोगों ने जब मल्लिकुमारी के ये वचन सुने तो उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हो आया। उससे अपने पूर्व मव जाने और प्रभु को पहचाना। वे हाथ जोड़कर कहने लगे – 'हे भगवन्! आपने हम लोगों की आंखें खोल दीं। हमें आज्ञा दीजिए हम क्या करे?' प्रभु बोले – 'मुझे केवल ज्ञान हो तब आना और दीक्षा ले लेना। फिर वे विदाय हुए। उसी समय लोकांतिक देवों ने आकर विनती की – 'हे प्रभु! अब तीर्थ प्रवर्ताइए।' तब प्रभु ने वरसीदान दे, छ? तप कर मार्गशीर्ष सुदि ११ के दिन अश्विनी नक्षत्र में सहसाम्र वन में जाकर एक हजार पुरुषों और तीन सौ स्त्रियों के साथ दीक्षा ग्रहण की। इंद्रादि देवों ने दीक्षाकल्याणक मनाया। उसी दिन प्रभु को मनःपर्यव और केवलज्ञान प्राप्त हुए। दूसरे दिन विश्वसेन राजा के घर पर पारणा किया। इंद्रादि देवों ने ज्ञानकल्याणक मनाया। उनके मित्रों ने उनके पास.चारित्र लिया। प्रभु के तीर्थ में कुबेर नाम का यक्ष और वैराट (धरणप्रिया) नाम की शासन देवी थी। उनके परिवार में - २८ गणधर, ४० हजार साधु, ५५ हजार साध्वियाँ, ६६८ चौदह पूर्वधारी, २ हजार २ सौ अवधिज्ञानी, १७५० मनः पर्यवज्ञानी, २ हजार २ सौ केवली, २ हजार ६ सौ वैक्रिय लब्धिवाले, १ हजार ४ सौ वादी, १ लाख ८३ हजार श्रावक और ३ लाख ७० हजार श्राविकाएँ थी। मल्लिनाथ अपना निर्वाणकाल समीप जान सम्मेद शिखर पर आये। पांच सौ साधुओं और पांच सौ साध्विओं के साथ उन्होंने अनशन ग्रहण किया। एक मास के बाद फाल्गुन सुदि १२ के दिन भरणी नक्षत्र में वे मोक्ष गये। इंद्रादि देवों ने मोक्ष कल्याणक मनाया। इनकी कुल आयु ५५ हजार वर्ष की थी, उसमें से १०० वर्ष कुमारावस्था में और शेष दीक्षा पर्याय में बितायी। इनका शरीर २५ धनुष ऊंचा था। अरनाथ के निर्वाण जाने के बाद कोटि हजार वर्ष पीछे मल्लिनाथजी मोक्ष में गये। : श्री मल्लिनाथ चरित्र : 138 :
SR No.002231
Book TitleTirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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