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तीसरा भव :
जंबूद्वीप के दक्षिण भरत में मिथिला नगरी थी। उनका राजा कुंभ था। उसकी स्त्री का नाम प्रभावती था स्वर्ग से महाबल का जीव च्यवकर फाल्गुन सुदि ४ के दिन अश्विनी नक्षत्र में प्रभावती के गर्भ में चौदह स्वप्न सहित आया। इंद्रादि देवों ने च्यवनकल्याणक मनाया।
समय के पूर्ण होने पर मार्गशीर्ष सुदि ११ के दिन अश्विनी नक्षत्र में प्रभावती देवी के गर्भ से कुंभलक्षण युक्त, नील वर्णी पुत्री का जन्म हुआ। जब पुत्री गर्भ में थी, तब माता को माल्य (पुष्प) की शय्या पर सोने की इच्छा हुई थी, इससे उनका मल्लि कुमारी नाम रखा गया। इंद्रादि देवों ने जन्मकल्याणक मनाया। वे क्रम से बढ़ती हुई युवा हुई।..
मल्लिकुमारी के पूर्वभव के मित्रों में से अचल का जीव साकेत नगरी में प्रतिशुद्ध नामक राजा हुआ। धरण का जीव चंपानगरी में चंद्रछाया नामक राजपुत्र हुआ। पूरण का जीव श्रीवत्सी नगरी में रुक्मी नामक राजा हुआ। वसु का जीव बनारसी नगरी में शंख नामक राजा हुआ। वैश्रवण का जीव . हस्तिनापुर में अदीनशत्रु नामक राजा हुआ और अमिचंद्र का जीव कंपिलापुर नगर में जितशत्रु नाम का राजा हुआ। इन छहों राजाओं ने पूर्व भव के स्नेह से मल्लिकुमारी के साथ विवाह करने की इच्छा से अपने-अपने दूत भेजे।
मल्लिकुमारी ने अवधिज्ञान से यह जानकर कि मेरे पूर्व भव के छहों मित्रों को अशोकवाटिका में ज्ञान होनेवाला है, अशोक वाटिका के अंदर एक खंड का महल तैयार कराया। उसमें एक मनोहर रत्नमयी सिंहासन बनवाया और उसमें एक मनोज्ञ स्वर्ण-प्रतिमा रखवायीं। वह पोली थी। उसके मस्तक में छेद रखवाया और उस पर स्वर्णकमल का ढक्कन लगवाया। फिर वह हमेशा ढक्कन उठाकर अपने आहार में से एक-एक ग्रास उसमें डालने लगी।
जिस मकान में प्रतिमा रखवायी थी, वह छोटा था। उसके छ: दरवाजे बनवाये। प्रत्येक दरवाजे पर ताला डलवा दिया। उन दरवाजों के
: श्री मल्लिनाथ चरित्र : 136 :