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कार्यक्रमों में नवकार मंत्र एवं स्तवनादि की दुर्दशा : भारतभर में जहां जहां जैन समुदायों के घर है, जैन मंदिर है,
आराधना भवन है, वहां निश्चित रूप से धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। कार्यक्रमों के दौरान जिनशासन की प्रभावना के नाम पर विभिन्न रथ यात्राएँ निकाली जाती है। बैंडबाजों के साथ
शोभायात्रा निकाली जाती है। बैन्डवालों द्वारा स्तवन भजन के साथ महामंत्र नवकार भी गाया जाता है। गाने वाले के मुंह में गुटका चलता रहता है, और जहां कहीं रूके वहां सिगरेट के कस भी। इस तरह से हमारा महामंत्र नवकार अपवित्र मुख अपवित्र स्थान एवं अपवित्र शरीर से सड़कों पर गाया जाता है। स्तवनादि एवं महामंत्र - नवकार, जो आत्मकल्याण के दिव्य, इहलोक, परलोक सर्वत्र सुखदायी महामंत्र, जो चौदह पूर्वो का सार, जिसके अड़सठ अक्षर
अड़सठ तीर्थों की यात्रा के समान फल देने वाले कहे जाते हैं। नवकार मंत्र में आठ दिव्य सम्पदाएँ व नव निधियां निहित है जो
भव-बंधन से मुक्त करने वाली है, ऐसे महामंगल महाश्रुत
स्कंध को क्या सड़कों पर इस तरह गाना उचित है ? क्या कभी सनातन धर्म के गायत्री मंत्र को, गीता के पाठ को इस प्रकार बैन्डवालों से सुना ? क्या मुसलमानों ने कलाम-ऐ-पाक को इस तरह बैन्ड पर बजवाया ? फिर हमारे इस महिमामय
नवकार मंत्र एवं स्तवनादि की ऐसी दुर्दशा क्यों ?