SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री प्रानन्दघन पदावली-१०७ मांगर ज्यु टगाइ के रही, पिय सबि के द्वारि । लाज डांग मन में नहीं, कानि पछेवड़ा डारि ।। हठीली० ।। २ ।। अटक तनक नहीं काहू की, हटकै न इक तिल कोर । हाथी पाप मत . अरइ पावै न महावत जोर ।। हठीली० ।। ३ ।। सुनि अनुभव प्रीतम बिना, प्रान जात इहि ठाहिं। हैज न अातुर चातुरी, दूर आनन्दघन नाहिं ।। हठीली० ।। ४ ।। अर्थ-सुमति की हठीली आँखें अपनी हठ छोड़ रही हैं, वे पुनि-पुनि प्रियतम को देखना चाहती हैं। अपने छैल छबीले प्रियतम की सुन्दर छवि को देखते हुए तृप्ति नहीं होती। यदि उन्हें बरबस रोका जाता है तो वे निगोड़ी आँखें आँसू बहाती हैं, रो देती हैं ॥१॥ विवेचन-सुमति अपने चक्षुत्रों से शुद्धात्मपति पर अन्तरदृष्टि से त्राटक करती है। उसका आत्मपति पर अत्यन्त विशुद्ध अनन्त गुना प्रेम होने से उसके दिव्य चक्षु भी आत्मा को देखने में तन्मय हो जाते हैं । दिव्य चक्षु सचमुच आत्म-स्वामी के रूप को गौर से देखते हैं। चेतन-पति अनन्तगुणों की शोभा से युक्त है और अनन्त सुख का दाता है। ऐसे आत्मपति की छवि देखने से सन्तोष नहीं होता परन्तु उन्हें परिपूर्ण शुद्ध भाव से तन्मयता से मिलने से सन्तोष होता है। सुमति के दिव्य चक्षु आत्म-प्रभु को बार-बार देखते रहते हैं। सुमति के उन्हें रोकने पर वे आँसू टपकाते हैं। सुमति के दिव्य चक्षुओं में विचित्रता दृष्टिगोचर होती है। वह आँखों को रोकती है, फिर भी वे पीछे नहीं हटतीं और रुदन करके आत्मपति के साथ एकतान हो जाती हैं। स्त्री को स्वामी के साथ सर्वप्रथम चक्षुत्रों के द्वारा प्रेम होता है। जिसके नेत्रों में प्रेम नहीं होता उसके हृदय में तो प्रेम हो भी कैसे सकता है ? सुमति के नेत्रों में आत्म-प्रभु को देखने के लिए अत्यन्त प्रेम है और वह कितना है यह जानना शक्ति से परे है। उसके नेत्रों में ही केवल प्रेम नहीं है, परन्तु उसके समस्त प्रदेशों में प्रेम, प्रेम और प्रेम ही व्याप्त है।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy