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मुनीश्वर के बस की बात है । जिस व्यक्ति को उनके अध्यात्म ज्ञानमय पदों में रुचि हो वही व्यक्ति उनके हृदय की व्यथा समझकर तदनुसार पाठ देकर हमारी ज्ञानवृद्धि कर सकता है ।
योगिराज श्रीमद् श्रानन्दघनजी के पदों में उनका क्या आशय था, यह जानने के लिए हमें उन पदों का, उन रचनात्रों का गहन चिन्तन करना चाहिए । इसी बात को ध्यान में रखकर अनेक मुनियों एवं विद्वानों की सहायता से अर्थ की गम्भीरता को जानने का प्रयास किया गया है । इसीलिए तो किसी विद्वान् ने कहा है
श्राशय श्रानन्दघनतणो, अति गंभीर उदार । बालह बाँह पसारीने, कहे उदधि विस्तार ॥
उनके पदों में व्यक्त उद्गार जैन आगमों के अनुरूप हैं और उसी को लक्ष्य में रखकर उनके पदों का भावार्थ, अर्थ तथा विवेचन प्रस्तुत किया गया है । श्रीमद् के उद्गार युगों-युगों तक जन-जन को प्रेरित करते रहेंगे । श्रीमद् श्रानन्दघनजी के पदों में अध्यात्मज्ञान, भक्तिज्ञानं' और योग - ज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं । वे अध्यात्मज्ञान कोटि के महापुरुष थे । उनके पदों के अर्थ भावार्थ आदि अनेक विद्वानों के द्वारा लिखे गये हैं, परन्तु अभी तक भावार्थ-लेखक एवं पाठक सन्तुष्ट नहीं हुए क्योंकि उनमें निहित गूढ़ार्थ को समझना उनके बस की बात नहीं है । उनके अध्यात्म ज्ञान सम्बन्धी पदों में गम्भीर अर्थ भरे हुए हैं । उनके भावार्थ सागर तुल्य हैं, उनमें गहरे उतरने पर ही हम मोती और रत्न निकाल सकते हैं । कहा भी है कि -
सागर के किनारे तो कंकड़-पत्थर ही मिला करते हैं । मोती पाने की तमन्ना हो तो उतरो सागर की गहराई में ॥
अत: यह निश्चित है कि श्रीमद् श्रानन्दघनजी की समस्त रचनाएँ अध्यात्म ज्ञान से परिपूर्ण हैं । अध्यात्म ज्ञान समस्त ज्ञानों में श्रेष्ठ ज्ञान है । हमारे शुभ संस्कार दृढ़ होने पर जिन भक्ति, शास्त्र का अध्ययन तथा आवश्यक क्रियाएँ करने का अभ्यास हो जाता है । श्रीमद् आनन्दघनजी जैसे योगी पुरुष ने आध्यात्मिक प्रानन्द प्राप्त करने का ढंग अपने पदों में स्पष्ट किया है । उनके पदों में संसार की विचित्रता इस प्रकार व्यक्त हुई है --