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________________ Uvavaiya Suttam Su. 16 तवस्सी-जिइंदिआ सोही अणियाणा अप्पुस्सुआ अबहिल्लेसा अप्पडिलेस्सा सुसामण्णरया दंता इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओकाउं विहरंति । उस काल ( वर्तमान अवसर्पिणी ) उस समय ( चतुर्थ आरे ) में श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी शिष्य बहुत से स्थविर ज्ञान और चारित्र में वृद्धि प्राप्त, भगवन्त, जाति सम्पन्न-उत्तम मातृ पक्ष युक्त, कुल सम्पन्नउत्तम पितृपक्ष युक्त, बल सम्पन्न, रूप सम्पन्न-सर्वाग सुन्दर, विनय सम्पन्न, ज्ञान सम्पन्न, दर्शन सम्पन्न, चारित्र सम्पन्न, लज्जा सम्पन्न, लाघव सम्पन्नभौतिक पदार्थों और कषाय आदि के भार से रहित, ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी-प्रभावशाली, यशस्वी थे, वे क्रोध, मान, माया और लोभ के उदय होने पर, उन्हें विफल कर देते थे, पाँचों इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखते थे, निद्रा के वशीभूत नहीं होते थे, अनुकूल और प्रतिकूल परीषहों को जीत लेते थे, जीवन की इच्छा और मृत्यु के भय से रहित, व्रत प्रधान-श्रेष्ठतम साधुता के धारक, गुण प्रधान-संयम आदि सद्गुणों से युक्त, करण प्रधान-आहारविशुद्धि आदि की विशेषताओं से सहित, चारित्र सम्पन्न-महाव्रत, दशविध यति धर्म आदि श्रेष्ठ आचार के धनी, निग्रह प्रधान-राग-द्वेष आदि शत्रुओं के निरोधक, निश्चय प्रधान-सत्य तत्व की निश्चितता में आश्वस्त अथवा कर्मफल के निश्चित विश्वासी, आर्जवप्रधान-सरलतायुक्त, मार्दव प्रधान—मदुता सम्पन्न, लाघव प्रधान आत्मलीनता के कारण किसी भी प्रकार के भार से विमुक्त क्षान्ति प्रधान-क्षमाशील, गुप्ति प्रधान मानसिक, वाचिक और कायिक प्रवृत्तियों के नियन्त्रक, मुक्ति प्रधान-मोक्ष-मार्ग की ओर अग्रसर या कामनाओं से मुक्त, विद्या प्रधान-ज्ञान की भिन्न-भिन्न शाखाओं के पारगामी, मन्त्र प्रधान-सत् मन्त्रों के ज्ञाता, वेद प्रधान-वेद आदि लौकिक शास्त्रों के ज्ञाता या लोकत्तर शास्त्रों के ज्ञाता, ब्रह्मचर्य प्रधान-ब्रह्मचर्य अथवा श्रेष्ठतम अनुष्ठान में स्थित, नय प्रधान-नगम, संग्रह आदि सात नयों के ज्ञाता, नियम प्रधान-नियमों के पालक, सत्य प्रधान, शौच प्रधान-आत्मिक शुचिता या पवित्रतायुक्त, ( निर्दोष समाचारी के धारक ) चारुवर्ण-सुन्दर वर्णयुक्त, लज्जा-संयम की विराधना में हृदय संकोच वॉले, तप के तेज द्वारा जितेन्द्रिय, शुद्धहृदय, निदान रहित-स्वर्ग तथा अन्यान्य वैभव, समद्धि आदि की कामना के बिना अध्यात्म साधना में संलग्न, भौगिक उत्सुकता
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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