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________________ उववाइय सुत्तं सू० १४ पव्वइआ राइण्णपव्वइआ णायपव्वइआ कोरव्वपव्वइआ खत्तिअपव्वइआ भडा जोहा सेणावई पसत्थारो सेट्ठी इब्भा अण्णे य बहवे एवमाइणो उत्तम-जाति-कुल-रूव-विणय-विण्णाण-वण्णलावण्ण-विक्कम-पहाण-सोहग्ग-कंति-जुत्ता बहु-धण-धण्ण - णिचय - परियाल-फिडिआ णरवइ-गुणाइरेगा इच्छिअ भोगा सुह-संपललिआ किंगाग-फलोवमं च मुणिअ विसयसोक्खं जलबुब्बुअ-समाणं कुसग्गजलबिंदु-चंचलं जीवियं च णाऊण अद्धवमिणं रयमिव पडग्गलग्गं संविधुणित्ता णं चइत्ता हिरणं जाव...पव्वइआ अप्पेगइआ अद्धमास-परिआया अप्पेगइआ मासपरिआया एवं दुमास तिमास जाव...एक्कारस-मास-परिआया अप्पेगइआ वासपरिआया दुवासतिवास-परिआया अप्पेगइआ अणेगंवास-परिआया संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ।।१४।। . उस काल (वर्तमान अवसर्पिणी ) उस समय ( चतुर्थ आरे ) में श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी-शिष्य बहुत से श्रमण भगवन्त संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे, उनमें कुछ श्रमण ऐसे थे, जो उग्र वंश वाले दीक्षित हुए थे कई भोग-राजा के मन्त्री-मण्डल के सदस्य प्रवजित हुए थे, कई राजन्य-राजा के परामर्श मण्डल के सदस्य दीक्षित हुए थे, कई ज्ञात या नाग वंश वाले प्रवजित हुए थे, कई कुरुवंशवाले दीक्षित हुए थे, कई क्षत्रिय वंशीय राजकर्मचारी प्रवजित हुए थे; कई भट-सुभट, कई योद्धा-युद्धोपजीवी अर्थात् सैनिक, कई सेनापति, कई प्रशास्ता-प्रशासन अधिकारी, कई श्रेष्ठी-सेठ, कई इभ्य-हाथी टंक जाय एतत् प्रमाण धनराशि वाले अत्यन्त धनिक, इनइन वर्गों में से दीक्षित हुए थे, ऐसे ही और भी बहुत से जन उत्तम मातृपक्ष, उत्तम पितृपक्ष, सुन्दर रूप, विनय, विशिष्ट ज्ञान, शारीरिक आभा-लावण्य, आकार की स्पृहणीयता, पराक्रम, सौभाग्य और कान्ति से युक्त-सुशोभित,. विपुल धन-धान्य के संग्रह, पारिवारिक समृद्धि से युक्त, राजा से प्राप्त अतिशय वैभव, इन्द्रियजन्य सुख आदि से युक्त इच्छित भोग प्राप्त और सुख से लालित-पालित थे, जिन्होंने सांसारिक भोगों के सुख को किंपाक फल' . के . समान असार, जीवन को पानी के बुलबुले तथा कुश-के सिर पर स्थित जल की बूंद के सदृश चंचल-क्षणिक जान कर सांसारिका
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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