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उववाइय सुत्तं सू० १२
वह वन्दन-नमस्कार करके पूर्व ( दिशा ) की ओर मुख किये अपने उत्तम सिंहासन पर बैठा। बैठकर उस वार्ता-निवेदक को एक लाख आठ हजार रजत मुद्राएँ तुष्टिदान-पारितोषिक के रूप में दी। उसे देकर उसका सत्कार किया, ( आदर सूचक-वचनों से ) सम्मान किया। उसने सत्कारसम्मान कर इस प्रकार कहा :
___ "हे देवानुप्रिय सौम्यचेता वार्ता-निवेदक! जब श्रमण भगवान् महावीर यहाँ पधारें, यहाँ समवसृत हों, इसी चम्पा नगरी के बाहर पूर्णभद्र चैत्य में यथाप्रतिरूप-श्रमणचर्या के अनुरूप आवासस्थान ग्रहण कर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विराजमान हों, मुझे यह समाचार निवेदित करना।” इस प्रकार कहकर राजा ने वार्ता-निवेदक को वहाँ से विदा-विसर्जित किया ॥१२॥ .
Having paid his homage and obeisance, he sat on the throne with his face turned eastward. The intelligence officer was rewarded with an offer of 1,08,000 silver coins, best of clothes and best of honour. Then the king said unto him :
"Oh beloved of the gods ! When Bhagavan Mahavira arrives, when he 'sets his steps in this city and takes his lodge in the Purņabhadra temple outside our city, enriching himself with rrestraint and penance, please let me know of it."
So saying, he dismissed the officer from his presence. 12
भगवान का आगमन
Bhagavån Mahavira arrives
तए णं समणे भगवं महावीरे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए 'फुलुप्पल - कमल - कोमलुम्मिलितंमि आहा ( अह ) पंडुरे पहाएरत्तासोगप्पगास किंसुअसुअ-मुह-गुंजद्ध-रागसरिसे कमलागर-संड-बोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलंते जेणेव चंपा गयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छति । उवागच्छित्ता