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________________ Uvavaiya Suttam Sh. 12 ing from village to village, has already arrived in the suburb of Campā and intends to camp near the Purņabhadra temple. This being a very pleasant piece of intelligence for you, the beloved of the gods, I submit this to you. May this make you. happy !” 11 कुणिक का परोक्ष वदन King Kūņika transmits homage तए णं से कूणिए राया भभसारपुत्ते तस्स पवित्तिवाउअस्स अंतिए एयम8 सोच्चा णिसम्म हट्टतुट्ठ जाव...हिए विअसिअ-वरकमल-णयण-वयणे पअलिअ-वर-कडग-तुडिय-केयूर-मउड-कुंडल-हारविरायंत-रइय-वच्छे पालंब पलंबमाण घोलंत-भूसण-घरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिंद सोहासणाड़ अब्भुट्ठइ। अब्भुट्टित्ता पायपिढाउ पच्चोरुहइ। पच्चोरुहित्ता , पाउआओ ओमुअइ । ओमुइत्ता अवहठ्ठ पंचराय ककुहाइं तं जहा-खग्गं छत्तं उप्फेसं वाहणाओ वालवीअणं । एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ। करेत्ता आयंते चोखे परम सूइभूए अंजलि-मलिग्ग हत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तट्ठ-पयाइं अणुगच्छति सत्तट्ठ-पयाइं अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ। वामं जाणुं अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि साहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणितलंसि निवेसेइ । निवेसेत्ता ईसिं पच्चुण्णमइ । पच्चुण्णमित्ता कडग-तुडिय-थंभिआओ भुआओ पाडसाहरति । पडिसाहरित्ता करयल जाव...कटु एवं वयासी : तब भंभसार का पुत्र राजा कूणिक उस वार्ता-निवेदक से यह बात कान से सुनकर, हृदय से धारण कर (हृदयंगम ) कर हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। सौम्य मनोमाव एवं हर्षातिरेक से हृदय खिल उठता है। उत्तम कमल के समान उसके नेत्र तथा मुख खिल उठे। हर्षातिरेक के कारण संस्फूर्तिवश राजा के हाथों के उत्तम कड़े, भुजाओं को सुस्थिर बनाये रखने वाली आभरण
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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