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उववाइय सुत्तं सू० ११
____37 अज्जिआ-साहस्सीहि ) सद्धि संपरिखुड़े पुव्वाणुपुदि चरमाणे गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे चंपाए णयरीए बहिया उवणगरग्गामं उवागए चंपं नगरिं पुण्ण भई चेइअं समोसरिउं कामे ॥ १० ॥
आकाशवर्ती धर्मचक्र, आकाशवर्ती तीन छत्र, आकाशवर्ती अथवा ऊपर उठते हुए चामर, आकाश के समान स्वच्छ, स्फटिक से बने हुए पादपीठ पर रखने की चौकी सहित सिंहासन, धर्मध्वज उनके आगे-आगे चल रहे थे। चौदह हजार साघु और छत्तीस हजार साध्वियों के साथ घिरे हुए थे। क्रमशः आगे से आगे चलते हुए, एक गांव से दूसरे गांव होते हुए, सुखपूर्वक विहार करते हुए चम्पा नगरी के बाहर उपनगर ( समीपवर्ती गांव ) में पधारे
और जहाँ से उन्हें चम्पा नगरी के पूर्णभद्र चैत्य . में पदार्पण करना थापधारने वाले थे ॥१०॥
Attended by a pious wheel, three umbrellas, a camara, a foot-stool and a throne made from pure crystal, all in the sky, headed by a spiritual banner, he, followed by 14,000 monks and 36,000 nuns moved from village to village, making them pure by his touch, himself wholly free from physical exhaustion, and arrived in the suburbs of the city of Campā, and was about to reach the Purņabhadra temple. 10
धर्म संदेश वाहक
The Information Officer
तए णं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लट्ठ समाणे हट्टतुट्ठचित्त-माणंदिए पीइमणे परम-सोमणस्सिए हरिस-वस-विसप्पमाणहियए हाए कयबलिकम्मे कय-कोउअ-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पवेसाई मंगलाइं वत्थाई पवर-परिहिए अप्पमहग्याभरणालंकिय-सरीरे सआओ गिहाओ पडिणिक्खमइ ।