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Uvavaiya Suttam Su. 3.
on account of the weight of leaves, some had ever thick bunches of flowers, some thick bunches of leaves, ever pleasant, some had creepers on, some ever existent in a single array, some always standing as couples, some were always bent low due to the weight of fruits and flowers, while some looked as if they had just started to bend. The last ones were always decorated with tiara-like buds and flowers.
___ सुय-बरहिण-मयण-साल-कोइल-कोहंगक - भिंगारक - कोंडलक - जीवंजीवग - णंदीमुह - कविल -पिंगलक्खग-कारंड-चक्कवाय - कलहंससारस-अणेग-सउणगण-मिहुण-विरइय-सद्दण्ण-इय-महुर - सर - णाइए सुरम्मे संपिंडिय - दरिय-भमर-महुकरि-पहकर-परिलिन्त-मत्त-छप्पयकुसुमासव-लोल-महुर - गुमगुमंत - गुंजत-देसभागे अभंतर-पुप्फ-फले - बाहिर-पत्तोच्छण्णे पत्तेहि य, पुप्फेहि य उच्छण्ण-पडिवलिच्छण्णे साउफले निरोयए अकंटए 'णाणाविह-गुच्छ-गुम्म-मंडवग-रम्म-सोहिए विचित्त-सुह-केउभूए वावी-पुक्खरिणी-दोहियासु य सुनिवेसिय-रम्मजालहरए।
तोते, मोर. मैना या काबर, कोयल, कोभगक, भिंगारक, कोण्डलक, चकोर, नन्दिमुख, तीतर, . बटेर, बत्तख, चक्रवाक, कलहस, सारस प्रभृति पक्षियों के जोड़ों के द्वारा की जाती शब्दों ( आवाज ) की उन्नत एवं मधुर स्वरों के आलाप से वे वृक्ष गुजित-प्रतिध्वनित थे, सुरम्य प्रतीत होते थे, वहाँ स्थित मदमाते भंवरों एवं भ्रमरियों या मधुमक्खियों के समूह एकत्र होकर लीन हो जाते थे और पुष्परस ( मकरन्द ) के लोभ से अन्यान्य स्थानों से आये हुए सभी जाति के भँवरे मस्ती से गुन-गुन कर रहे थे, जिससे वह स्थान गुजायमान था। वे वृक्ष भीतर से फूलों एवं फलों से आपूण थे तथा बाहर से पत्तों से आवृत्त-ढंके हुए थे, वे पत्तों और फूलों से सर्वथा ( पूरे ) लदे हुए थे। उनके फल मीठे, रोगरहित, निष्कण्टक थे। वे तरह-तरह के फूलों के गुच्छों, लता-कुंजों तथा मण्डपों के द्वारा शोभित थे, रमणीय ( सुहावने ) प्रतीत होते थे। वहाँ विभिन्न प्रकार की सुन्दर ध्वजाएँ फहराती थीं। चौकोर, गोल और लम्बी . बावड़ियों में जालीझरोखेदार सुन्दर ढंग से भवन बने हुए थे।