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उववाइय सुत्तं सू० १
वर-भवण-सण्णिमहिया उत्ताण-णयण - पेच्छणिज्जा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा ॥ ९ ॥
बाजार, व्यापार क्षेत्र आदि के कारण एवं कुम्भकारों, कारीगरों आदि के आवासित होने के कारण वह नगरी सुख-सुविधापूर्ण थी । तिकोने स्थानों, तिराहों, चौराहों, ऐसे स्थानों पर क्रय और विक्रय करने के निमित्त अनेक दुकानों एवं अनेक प्रकार की वस्तुओं से वह नगरी सुशोभित थी, रमणीय थी । राजा की सवारी निकलते रहने के कारण उस नगरी के राजमार्गों पर भीड़ लगी रहती थी । वहाँ के राजमार्ग पर अनेक उत्तम घोड़ों, मदोन्मत्त हाथियों. रंथसमूहों, पर्देदार पालकियों, पुरुषप्रमाण पालकियों, गाड़ियों और दो हाथ लम्बे-चौड़े डोलियों का जमघट लगा रहता था । वहाँ जलाशयों का जल भी प्रफुल्लित नवीन नवीन कमलिनियों से सुशोभित था। सफेदी किए हुए उत्तम भवनों से वह प्रशंसित थी । नगरी की अत्यधिक सुन्दरता निर्निमेष नेत्रों से प्रेक्षणीय थी । चित्त को प्रसन्न करने वाली, दर्शनीय, दर्शक के मन को अपने में रमा लेने वाली, तथा मन में बस जाने वाली थी ॥ १ ॥
Because of the existance of many shops, trade centres and workshops, prosperity was visible everywhere. Triangular parks and places where three roads met, squares and places where four roads met, were graced by shops which offered for sell metalled vessels, and by sundry mansions which were used for residence,-all exceedingly delightful. The city roads were always crowded because of the frequent coming and going by the king (who naturally attracted many people). The roads were also crowded by beautiful horses, elephants, covered palanquins, palanquins for men, chariots and other vehicles. By the side of the roads, at intervals, there were tanks full of blossomed lotuses and kumuda flowers. On both sides of the roads, there were rows of beautiful, milk-white buildings. Anyone who set. his eyes on the city found it difficult to remove them,-so charming it was to sight. It was pleasant to the mind, delightful to the eyes, fully absorbing the attention of the seer. 1