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________________ 310 Uvavaiya Suttam Su. 43 गौतम : से कहिं खाइ णं भंते ! सिद्धा परिवसंति ? महावीर : गोयमा ! इमीसे रयणप्पहाए पुढवीए . बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ड चंदिमसूरियग्गहगणणक्खत्तताराभवणाओ बहूई जोयणसयाई बहूइं जोयणसहस्साई बहूई जोयणसयसहस्साई बहूओ जोयणकोडीओ बहूओ जोयणकोडाकोडोओ उड्डतरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाणसणंकुमारमाहिंदबंभलंतगमहासुक्कसहस्सारआणयपाणयारणच्चुय तिणि य अट्ठारे गेविज्जविमाणावाससए वीइवइत्ता विजयवेजयंतजयंतअपराजियसव्वट्ठसिद्धस्स य महाविमाणस्स सव्वउपरिल्लाओ थूभियग्गाओ दुवालसजोयणाई अबाहाए एत्थं णं ईसीपब्भारा णाम पुढवी . पण्णत्ता। गौतम : हे भगवन् ! क्या सिद्ध ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के नीचे निवास करते हैं ? महावीर : नहीं, ऐसा अर्थ अभिप्राय ठीक नहीं है । गौतम : हे भगवन् ! फिर सिद्ध कहाँ निवास करते हैं ? महावीर : हे गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमि भाग के ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र तथा ताराओं के भवनों से. बहुत-से योजन, बहुत-से संकड़ों योजन, बहुत-से हजारों योजन, बहुत-से लाखों योजन, बहुत-से करोड़ों योजन, बहुत-से कोड़ों-कोड़ों योजन से ऊर्ध्वतर-बहुत-बहुत ऊपर जाने पर सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, तीन सौ अठारह अवेयक विमान आवासों को पार कर या उन से ऊपर, विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध महाविमान के सर्वोच्च शिखर के अग्रभाग से बारह योजन के अन्तर पर ऊपर ईषत्प्राग्भारा नामक पृथ्वी कही गई है। Gautama : Bhante ! Do they reside beneath the Isatprāgbhārā earth ( the Siddhasila ) ?
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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