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उववाइय सुत्तं सू० ४३
पुव्वरइयगुणसेढियं च णं कम्मं तीसे सेलेसिमद्धाए असंखेज्जाहिं गुणसेढीहिं अणंते कम्मंसे खवेति । वेयणिज्जाउयणामगुत्ते इच्चेते चत्तारि कम्मसे जुगवं खवेइ ।
उस शैलेषी काल में पूर्व रचित-शैलेषी अवस्था से पहले रची गई, गणश्रेणी के रूप में रहे हुए कर्मों को-असंख्यात गुणश्रेणियों में अनन्त कमीशों को क्षीण करते हैं। वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र इन चारों कमांशों का युगपत-एक साथ क्षय करते हैं ।
He cuts all karma acquired till the time of attaining rocklike steadfastness and still extant in the form of gunaśreņi, i. e., consciously brought up in a manner to be conveniently cut at one stroke, and also on infinite number of such karma parts still extant similarly brought up. And then karma giving experience, life-span, name lineage, these four are exhausted at a time.
खवित्ता ओरालियतेयाकम्माइं सव्वाहिं विप्पयहणाहिं विप्पजहइ। विप्पजहिता उज्जूसेढीपडिवण्णे अफुसमाणगई उड्ढे एक्कसमएणं अविग्गहेणं गंता सागारोवउत्ते सिज्झिहिइ ।
• 'इन्हें एक साथ क्षय कर औदारिक, तेजस, तथा कार्मण शरीर को, अशेष-विविध त्यांगों के द्वारा पूर्ण रूप परित्याग कर देते हैं। वैसा करपरित्याग कर ऋजुश्रेणी प्रतिपन्न हो लोकाकाश-प्रदेशों की सीधीपंक्ति का अवलम्बन कर, अस्पृश्यमान गति द्वारा सीधे एक समय में ऊर्ध्व गमन कर-ऊँचे पहुँच कर साकारोपयोग-ज्ञानोपयोग में सिद्ध होते हैं।
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After this he gives up through diverse methods af renun