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________________ उववाइय सुत्तं सू० ४२ 287 तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलससहस्साई दोण्णि य सत्तावीसे जोयणसए तिण्णि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलियं च किंचि विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्ते । गौतम : हे भगवन् ! भावितात्मा-विशुद्धात्मा-अध्यात्म मार्ग का अनुसा अनगार-श्रमण केवलि समुद्घात द्वारा-मुक्ति के निकट अधिकारी आत्मा के प्रदेशों से सम्बद्ध कर्मों की साम्यावस्था के लिये होने वाली एक विशिष्ट प्रकार की स्वाभाविक आत्मिक प्रक्रिया या आत्म प्रदेशों को शरीर से बाहर निकाल कर, विस्तृत होकर क्या सम्पूर्ण लोक का स्पर्श कर स्थित होते हैं ? महावीर : हाँ गौतमं ! स्थित होते हैं-रहते हैं। गौतम : हे भगवन् ! उन निर्जरा प्रधान-कर्मावस्था को प्राप्त नहीं हुए पुद्गलों से-खिरे हुए पुद्गलों से समूचा लोक स्पृष्ट होता है ? . महावीर : हाँ गौतम, ऐसा होता है। गौतम : हे भगवन् ! छमस्थ-अष्टविध कर्मावरण युक्त या केवलज्ञान से रहित मनुष्य क्या उन निर्जरा प्रधान पुद्गलों के किञ्चित वर्ण रूप से वर्ण को, गन्ध रूप से गन्ध को, रस रूप से रस को, और स्पर्श रूप से स्पर्श को जानता है, देखता है ? महावीर : हे गौतम ! यह आशय संगत नहीं है, अर्थात् ऐसा संभव नहीं है। . . ___ गौतम : हे प्रभो! यह किस आशय-अभिप्राय से कहा जाता है कि छद्मस्थ-व्यक्ति उन अकमविस्थाप्राप्त पुद्गलों-खिरे हुए पुद्गलों के वर्ण रूप से वर्ण को, गन्ध रूप से गन्ध को, रस रूप से रस को तथा स्पर्श रूप से स्पर्श को किञ्चित् जरा भी नहीं जानता है, नहीं देखता है ? __ महावीर : गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप सभी द्वीप समुद्रों के बिलकुल बीचोबीच स्थित है। यह आकार में सब से छोटा है, गोल है। तेल में पके हुए पूर्य के सदृश गोल है। यह जम्बूद्वीप रथ के पहिये के आकार के समान गोल है। कमल-कणिका-कमल के बीज-कोष के समान गोलाकार हैं। पूर्ण चन्द्र के आकार के सदृश गोल है। यह
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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