SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उववाइय सुत्तं सू० ४१ 285 Sarvārthasiddha, where the span of stay is as long as 33 sāgaropamas. They propitiate next birth. The rest as before. 21 सर्व काम विरतों का उपपात Rebirth of those who are desisted from all desires से 'जे इमे गामागर जाव.. सण्णिवेसेसु मणुआ भवंति । तं जहा-सव्वकामविरया सव्वरागविरया सव्वसंगातीता सव्वसिणेहातिक्कंता अक्कोह्य णिक्कोहा खीणक्कोहा एवं माणमायालोहा अणुपुग्वेणं अट्ठकम्मपयडीओ खवेत्ता उप्पिं लोयग्गपइटाणा हवंति ।।२२।।४१॥ ये जो ग्राम, आकर-नमक आदि के समुत्पत्ति-स्थान,...यावत् मनुष्य होते हैं, जो इस प्रकार हैं : सर्वकामविरत-समस्त शब्द, वर्ण, गन्ध आदि काम्य-विषयों से निवृत्त या उन में उत्सुकता न रखना, सर्वराग विरत-सब प्रकार के रागात्मक परिणामों से हटे हुए, सर्व संगातीत सब प्रकार की आसक्तियों से निवृत्त, सर्वस्नेहातिक्रान्त-सब प्रकार के प्रेमानुराग से विमुक्त-रहित, अक्रोध-क्रोध को विफल करने वाले, निष्क्रोधक्रोध का उदय ही नहीं होने देना या जिन्हें क्रोध आता ही नहीं है, क्षीण क्रोध-अन्तरंग-समरांगण में क्रोध निःशेष कर देना या जिन का क्रोध-कषाय-क्रोध मोहनीय कर्म क्षीण-क्षय हो गया है, इसी प्रकार जिन के मान, माया और लोभ विस्मत हो गये हों, वे आठों कर्म-प्रकृतियों का क्रमशः क्षय करते हुए लोक के अग्र भाग में प्रतिष्ठित अवस्थित होते हैंमोक्ष प्राप्त करते हैं ॥२२॥४१॥ In the villages, towns, till sannivejas, there may be men who are desisted from all desires, from all attachments, from
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy