________________
उववाइय सुत्तं सू० ४१
283 a long fast, missing many a meal to attain the goal for which they underwent hardships, till end all misery.
जेसिपि य णं एगइयाणं णो केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जइ ते बहुइं वासाइं छउमत्थपरियागं पाउणंति। पाउणित्ता आबाहे उप्पण्णे वा अणुप्पण्णे वा भत्तं पच्चक्खंति । ते बहुई भत्ताई अणसणाए छेदेति । छेदित्ता जस्सट्ठाए कीरइ णग्गभावे जाव... तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहिं ऊसासणीसासेहिं अणंतं अणुत्तरं निव्वाघायं निरावरणं - कसिणं पडिपुण्णं केवलवरणाणदसणं उप्पाडिति । तओ पच्छा सिज्झिहिंति जाव...अंत्तं करेहिति ।
जिन कइयों-कतिपय श्रमणों को केवल-ज्ञान और केवल-दर्शन समुत्पन्न नहीं होता है वे बहुत वर्षों तक छद्मस्थ-पर्याय-कविरण से युक्त अवस्था में विचरण करते हुए संयम का पालन करते हैं अर्थात् अध्यात्मसाधना में संलग्न रहते हैं। वे अपने गृहीत पर्याय का पालन कर फिर • किसी आबाध-रोगादि विघ्न के उत्पन्न होने पर अथवा न होने पर भी वे आहार का त्याग कर देते हैं। वे बहुत से भोजन-काल अनशन-निराहार द्वारा विच्छिन्न करते हैं। अनशन सम्पन्न कर जिस लक्ष्य के लिये नग्न भावशारीरिक संस्कारों के प्रति अनासक्ति या जिस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अध्यात्ममार्ग स्वीकार किया, उसे आराधित कर-पूर्ण कर अपने अन्तिम उच्छवासनिःश्वास में अनन्त-अनन्त पदार्थों को जानने वाला या अन्त-रहित, अनुत्तर- सर्वाधिक श्रेष्ठ निर्व्याघात - व्यवधान रहित या बाधा-मुक्त, निराव ण--आवरणों से रहित, कृत्स्न सवर्थिग्राहक, प्रतिपूर्ण-अपने समस्न अविभागी अंशों स समायुक्त, केवल-ज्ञान, केवल-दर्शन प्राप्त करते हैं। वे उस के बाद सिद्ध होते हैं.. यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं।
And those who fail to attain the state of supreme knowledge and faith, they continue to live as chadmasthas, with a cover of