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नमो जिणाणं जियभयाणं
उववाइय-सुत्तं
. नगरी वर्णन
The City of Campa
ते णं काले णं ते णं समए णं चंपा नाम नयरी होत्था । रिद्ध-स्थिमिय-समिद्धा पमुइय-जण-जाणवया आइण्ण-जण-मणुस्सा हल-सयसहस्स-संकिट्ठ-विकिट्ठ-लट्ठ-पण्णत्त-सेउसीमा कुक्कुड-संडेअ-गामपउरा उच्छु-जव-सालि-कलिया गो-महिस-गवेलग-प्पभूता ।
उस काल ( वर्तमान अवसपिणी काल के चतुर्थ आरे के अन्त में ) उस समय ( जब आर्य सुधर्मा विद्यमान थे ) चम्पा नाम की नगरी थी। वह नगरी वैभवशाली, सुरक्षित एवं समृद्ध थी। वहां के नागरिक और जनपद के अन्य भागों से आये व्यक्ति प्रमुदित रहते थे। वहाँ की भूमि अधिक से अधिक मानव-जनसंख्या से संकुल बनी रहती थी। हजारों हलों द्वारा जती उसकी समीपवर्ती भूमि सुन्दर मार्ग-सीमा-सी प्रतीत होती थी। वहाँ मुर्गों और छोटे-छोटे सांडों के बहुत से समूह थे। उसके आस-पास की भूमि ईख, जो एवं धान के पौधों से लहलहाती थी। वहां गायों, भैसों और भेड़ों की प्रचुरता थी। .
In that period, at that time, there was a city named Campā. It was rich in its skyline, free from turmoil, and prosperous. Thorssidents of the said city and the people coming to the city were happy so that the city had a vast population. All around it/in its neighbourhood, there were vast stretches of cultivated land extending over a long distance, always in use, looking