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________________ उववाइय सुत्तं सू० ४० 261 अप्पाणं झूसित्ता सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेएत्ता जस्सट्ठाए कोरइ * णग्गभावे मुंडभावे अण्हाणए अदंतवणए केसलोए बंभचेरवासे अच्छत्तकं अणोवावाहणकं भूमिसेज्जा फलहसेज्जा कट्ठसेज्जा परघरपवेसो लद्धावलद्धं परेहि होलणाओ खिसणाओ जिंदणाओ गरहणाओ तालणाओ तज्जणाओ परिभवणाओ पव्वहणाओ उच्चावया गामकंटका बाबोसं परोसहोवसग्गा अहियासिज्जति । तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहिं उस्सासणिस्सासेहि सिज्झिहिति बुझिहिति मुच्चिहिति परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति ॥१४॥४०।। उसके बाद. दृढ़प्रतिज्ञ केवली बहुत वर्षों तक केवली पर्याय केवली अवस्था का पालन करेंगे अर्थात् केवली-पर्याय में विचरेंगे। यों केवलीअवस्था का पालन कर, एक.मास की संलेखना द्वारा अपने में आप को लीन कर के साठ भोजन--एक मास का अनशन-निराहार सम्पन्न कर या भोजन के साठ समयों को बिना खाये-पीय ही काटकर, जिस लक्ष्य के लिये नग्नभाव-शारीरिक संस्कारों के प्रति अनासक्ति, मुण्डभाव-सांसारिकसम्बन्धों एवं ममता का त्याग कर-श्रमण-जीवन की साधना, अस्नानस्नान नहीं करना, अदन्त गवन-दौत नहीं धोना-मंजन न करना, केशलोच-बालों को अपने हाथों से उखाड़ना, ब्रह्मचर्यवास-ब्रह्मचर्य का पालनाबाह्य एवं आभ्यन्तर रूप में अध्यात्म साधना, अच्छत्रकछाता धारण नहीं करना, पादरक्षिया या जूते धारण नहीं करना, पहनना नहीं, भूमिशय्या-भूमि पर सोना, फलकशय्या-काष्ठ पट पर सोना या सामान्य काठ की पटिया पर शयन करना, आहार के लिये पर गृह में प्रवेश करना, जहां चाहे आहार मिला अथवा नहीं मिला हो, अर्थात् सम्मान सहित मिला हो, अपमान सहित मिला हो, दूसरों से जन्म-कर्म की भर्त्सनापूर्ण तिरस्कार, खिसना-मर्मोद्घाटनपूर्वक अवहेलना, निन्दना-निन्दा, गर्हणालोगों के सामने अपने सम्बन्ध में व्यक्त किये गये कुत्सित भाव, तर्जनाअंगुली द्वारा निर्देश--संकेत कर कहे गये कटुतापूर्ण वचन, ताड़ना-थप्पड़ आदि के द्वारा परिताड़न, परिभवना-पराभव--अपमान, परिव्यथना-- लोगों के द्वारा दी गई व्यथा, भिन्न-भिन्न प्रकार की इन्द्रिय विरोधीआंख, कान, नाक आदि इन्द्रियों के लिये कष्टप्रद स्थितियां, बाईस प्रकार
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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