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उववाइय सुत्तं सू० ४०
तए णं से दढपइण्णे दारए बावत्तरिकलापंडिए नवंगसुत्त- पडिबोहिए अट्ठारसदेसोभासाविसारए गोयरती गंधव्वणट्टकुसले हयजोहो गयजोही रहजोहो बाहुजोहो बाहुप्पमद्दी वियालचारी साहसिए अलं भोगसमत्थे आवि भविस्सइ ।
तब वह दृढ़प्रतिज्ञ बालक बहत्तर कलाओं में पण्डित-मर्मज्ञ, सुप्त नवअंगों-दो कान, दो नेत्र, दो घाण, एक जिह्वा, एक त्वचा एवं एक मन इन नौ अंगों की चेतना या संवेदना के जागरण से युक्त, अर्थात् युवावस्था में प्रविष्ट, अठारह देशों की भाषाओं में विशारद-निपुण, संगीत प्रेमी-- संगीत-विद्या, नत्य कला आदि में कुशल--प्रवीण, अश्वयुद्ध-घोड़े पर सवार होकर बद्ध करना, गजयुद्ध-हाथी पर सवार होकर युद्ध करना, रथयुद्ध-रथ पर सवार होकर युद्ध करना, बाहुयुद्ध-भुजाओं द्वारा युद्ध करना, इन सब में दक्ष, बाहुओं से प्रमर्दन करने वाला, निर्भीकता के कारण रात में भी घूमने-फिरने में निःशंक, प्रत्येक कार्य में साहसी-दृढ़ प्रतिज्ञा वाला, यों वह बालक सांगोपांग विकसित-संवद्धित होकर पूर्णतः भोगसमर्थ हो जायेगा।
Then the said Drąhapratijña, versed in seventytwo arts, fülly exposed to the nine Angas about which people are in the dark, a polyglot in eighteen languages, fond of music, a dancer in the Gandharva style, a warrior who could fight from horseback, elephant, chariot or even with bare arms, a crusher . with his arms, free rover at night and brave, will acquire. full
capacity to enjoy life.
तए णं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो बावत्तरिकलापंडियं जाव...अलं भोगसमत्थं वियाणित्ता विउलेहिं अण्णभोगेहिं पाणभोगेहि लेणभोगेहिं वत्थभोगेहिं सयणभोगेहिं कामभोगेहि उवणिमंतेहिति ।
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