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Uvavaiya Suttam St. 40
purify gold, (65) Art of walking on rope, (66) Art of string play, (67) Art of piercing the lotus stalk, (68) Art of piercing certain number of leaves out of 108 leaves, (69) Art of piercing bangle or ear-rings, (70) To bring to life a dead or an unconscious, (71) To make a lving person look like dead, (72) Art of reading signs.
सिक्खावेत्ता अम्मापिईणं उवणेहिति। तए णं तस्स दढपइण्णस्स दारगस्स अम्मापियरो तं कलायरियं विपुलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थगंधमल्लालंकारेण य सक्कारेहिति सम्माणेहिति । सक्कारेत्ता संमाणेत्ता विपुलं जोवियारिहं पीइदाणं दलइस्सइ। दलइस्सित्ता पडिविज्जेहिंति ।
ये बहत्तर कलाएँ सधा कर, इन का प्रशिक्षण देकर-सम्यक् रूप से अभ्यास करा कर कलाचार्य उस बालक को माता-पिता को सौंप देंगे या उन के पास ले जाएगे। तब उस दढ़प्रतिज्ञ बालक के माता-पिता उस कलाचार्य का विपुल-प्रचुर, अशन-अन्नादि निष्पन्न भोज्य पदार्थ, पान-- पानी, खाद्य-फल, मेवा, आदि पदार्थ, स्वाद्य-पान, सुपारी इलायची आदि मुखवासकर पदार्थ, वस्त्र, गन्ध, माला एवं अलंकार द्वारा सत्कार करेंगे, सम्मान करेंगे। सत्कार कर, सम्मान कर उन्हें विपुल-प्रचुर जीविका के योग्य--जिससे समुचित रूप में जीवन का निर्वाह होता रहे, ऐसा प्रीतिदान-पारितोषिक--पुरस्कार देंगे। उन्हें पुरस्कार देकर प्रतिविजित-- विदा करेंगे।
Having imparted these arts to the boy, the preceptor will call on the parents of the boy. The parents will welcome the preceptor and will bestow on him a huge quantity of food, drink, dainties and delicacies, clothes, perfumes, garlands and ornaments and honour him suitably. They will offer him enough to live comfortably, and in the end, bid him goodbye.